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प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
सचमुच मुझे दंड दो कि

भूलूँ मैं

प्ले मैं

तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवि अंधकार अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पालूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय यह उजेला अब

सहा नहीं जाता है।

नहीं सहा जाता है।


प्रसगं: प्रस्तुत पक्तियों हमारी पाठ्यपुस्तक में सकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि अपने जीवन की प्रत्येक अनुभूति एवं उपलब्धि को प्रिय की देन मानता है। कवि ने भ्रमवश प्रिय को भूलने का प्रयत्न किया, जिसके कारण वह अपराध से ग्रसित हो गया है। वह अपराध स्वीकार करता हुआ, कहता है-

व्याख्या: हे प्रिय, तुम मुझे दंड दो कि मैं तुम्हें भूल जाऊँ। यद्यपि यह बहुत बड़ा दंड होगा, लेकिन मैं चाहता हूँ. कि तुम मुझे यह दंड दो। मेरे जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। मैं उस विस्मरण को अपने शरीर, मुख और अत -करण में पार्ट, सहन करूँ और उसी में स्नान कर लूँ अर्थात् पूरी तरह सराबोर हो जाऊँ। मैं मन और बाहर दोनों रूपों में वियोग की पीड़ा झेलना चाहता हूँ। मैं स्वयं को अंधकार में इसलिए विलीन कर देना चाहता हूँ क्योंकि मेरा व्यक्तित्व चारों ओर से तुम्हारे प्रेम से घिरा हुआ है। अब मेरा मन तुम्हारे अद्भुत सौंदर्ययुक्त निश्चल और उज्जल प्रेम के प्रकाश को सहन नहीं कर पा रहा है। भाव यह है कि कवि के मन को उसके प्रिय ने अपने प्रेम के उज्जल आलोक से घेर रखा है। कवि के अपराधग्रस्त मन से अब यह आलोक (प्रेम का प्रकाश) सहन नहीं हो पाता। रह-रहकर उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।

विशेष: 1. अपराधबोध से ग्रस्त मानसिकता का सजीव चित्रण किया गया है।

2. अंधकार-अमावस्या निराशा के प्रतीक हैं।

3. रूपक एवं अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

4. भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा समासयुक्त है।

5. ‘सहा नहीं जाता’ की पुनरुक्ति में दर्द की गहराई का आभास होता है।

6. खड़ी बोली का प्रयोग है।

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गजानन माधव मुक्तिबोध के व्यक्तित्व तथा कृतित्व का परिचय दीजिए।


प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब

यह विचार-वैभव सब

दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनय सब

मौलिक है, मौलिक है,

इसलिए कि पल-पल में

जो कुछ भी जागृत है, अपलक है-

संवेदन तुम्हारा है!!


प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है

सहर्ष स्वीकारा है,

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है

वह तुम्हें प्यारा है।


प्रस्तुत पक्तियों की सप्रंसग व्याख्या करें
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है

जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है

दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।


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