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कवितावली के उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।


‘कवितावली’ के उद्धृतछंदों के आधार पर कहा जा सकता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता का ज्ञान भली प्रकार था। यह विषमता बेरोजगारी के कारण उत्पन्न हुई थी। लोगों के पास न कोई काम-धंधा था न वे अपना पेट भर पा रहे थे। आर्थिक विषमता के कारण ही समाज में ऊँच-नीच का भाव मौजूद था। तुलसीदास के अनुसार आर्थिक दरिद्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है। इससे विवश होकर लोग निकृष्टतम काम करने को भी तैयार हो जाते हैं। इससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है। इससे भले परिवार भी टूट जाते हैं। गरीबी के करण लोग उनके कुल-गोत्र पर भी प्रश्नचिह्न लगाते थे। वे लोगों की आर्थिक दुर्दशा स्वयं देखते थे तथा उनकी दीनावस्था का अनुभव भी करते थे। इसी का बखान उन्होंने कवितावली के छंदों में किया है।

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पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।


मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता

जौ जनतेउँ बन बंधु बिछोहु। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।


धूत कहौ…वालेछंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?

तुलसी ने यह कहने की जरूरत क्यों समझी? मूल कहाँ, अवधूत कही, राजपूत कहौ, जोलहा कहौ, कहौ, कोऊ/काहू की बेटी से बेटा न ब्याहब काहू की जाति बिगार न सोऊ।इस सवैया में काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?


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