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तुलसी ने यह कहने की जरूरत क्यों समझी? मूल कहाँ, अवधूत कही, राजपूत कहौ, जोलहा कहौ, कहौ, कोऊ/काहू की बेटी से बेटा न ब्याहब काहू की जाति बिगार न सोऊ।इस सवैया में काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?


तुलसी ने यह कहने की जरूरत इसलिए समझी क्योंकि उस समय के लोगों ने उनके कुल-गोत्र और वंश पर प्रश्नचिह्न लगाए थे। कवि सांसारिक संबंधों के प्रति विरक्ति प्रकट करता है। उसे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है, चाहे कोई उसे धूर्त कहे अथवा संत कहे। चाहे कोई उसकी जाति राजपूत समझे या जुलाहा समझे; उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे किसी के साथ वैवाहिक संबंध तो स्थापित करना नहीं है।

इस सवैया में यदि वे ऐसा कहते-‘काहू के बेटा सों बेटी न वब्याहब।’ तो सामाजिक अर्थ में यह परिवर्तन आता कि समाज में पुरुष वर्ग की प्रधानता है।

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पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।


धूत कहौ…वालेछंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?

कवितावली के उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।


मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता

जौ जनतेउँ बन बंधु बिछोहु। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।


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