बाजा़र का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
बाजा़र का जादू चढ़ने पर मन अधिक-से-अधिक चीजें खरीदना चाहता है। तब व्यक्ति को लगता है कि बाजार में बहुत कुछ है और उसके पास बहुत कम चीजें हैं। बाजार का जादू व्यक्ति के सिर चढ़कर बोलता है। वह कहता है आओ मुझे लूटी और लूटी।
बाजा़र का जादू मनुष्य को विकल बना देता है। उसके पास जितना पैसा होता है, चीजें खरीदता चला जाता है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या ले और क्या छोड़े। सभी कुछ लेने को जी चाहता है। बाजा़र का जादू आँख की राह काम करता है। बाजा़र का जादू उतरने पर मनुष्य को पता चलता है कि फंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। बाजा़र का जादू उतरने पर उसे अपने द्वारा खरीदी गई चीजें अनावश्यक मालूम होने लगती हैं।
बाजा़र किसी का लिंग, जाति-मजहब या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ़ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं?
बाजा़र में भगतजी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?
'बाजा़रूपन' से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजा़र को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजा़र की सार्थकता किसमें है?