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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-’पागल है पागल, मरा-ऐं!’ मरा-मरा!....पर वाह रे बहादुर। लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को संभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे- “जाओ, मेला देखकर घर जाओ।”
1. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली क्यों मच गई?
2. श्याम नगर के राजा का क्या नाम था? उसे क्या प्रिय लगता था?
3. राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती क्यों रुकवा दी?
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को कितने रुपये का नोट दिया और क्यों?


1. एक बार श्यामनगर में मेला लगा हुआ था। लुट्टन सिंह भी वहाँ मेला देखने गया। वहाँ दंगल लगा हुआ था जिसमें शेर के बच्चे के नाम से एक मशहूर पहलवान आया हुआ था। आज तक उसकी बराबरी का कोई पहलवान नहीं था लेकिन ढोल की धुन से जोश में आकर लुट्टन सिंह ने उस शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। इसी चुनौती को देखकर शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई।
2. श्यामनगर के राजा का नाम श्यामानंद था। उसे शिकार प्रिय लगता था। इसके साथ-साथ उसे दंगल का भी बहुत शौक था।
3. राजा साहब चाँद सिंह पहलवान को जानता था। वह उसके दावपेंच पहले भी देख चुका था। चाँद सिंह पहले ही शेर के बच्चे की उपाधि प्राप्त कर चुका था लेकिन लुट्टन सिंह पहली बार ही दंगल में लड़ा था। इसीलिए राजा साहब ने कुश्ती बीच में रुकवा दी।
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को दस रुपये का नोट दिया क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नामक बलशाली पहलवान से लड़ने की हिम्मत की थी।

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फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के जीवन का परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए तथा रचनाओं का उल्लेख कीजिए।


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती-’चट्-धा, गिड़-धा,… चट्-धा, गिड़-धा।’ यानी ‘आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा।…’बीच-बीच में- ‘चटाक् चट्-धा, चटाक् चट्-धा।’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’
यही आवाज मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।
लुट्टसिहं पहलवान!
यों तो वह कहा करता था- ‘लुट्टन सिंह पहलवान को होल इंडिया भर के लोग जानते हैं’, किन्तु उसके ‘होल-इंडिया’ की सीमा शायद एक जिले की सीमा के बराबर ही हो। जिले भर के लोग उसके नाम से अवश्य परिचित थे।
1. पाठ का नाम तथा लेखक का नाम बताइए।
2. कुत्तों के बारे में क्या बताया गया है?
3. रात्रि की भीषणता क्या थीं? इनको कौन, किस प्रकार ललकारता था?
4. कौन- सी आवाज क्या असर दिखाती थी?


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्याम नगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना-कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी।

‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँव सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्याम नगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुन्दरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उप्र के सभी पट्टों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे’ की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँदसिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।
1. एक बार कौन, कहाँ गया? वहाँ का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
2. किस बात से उत्साहित होकर उसने किसे चुनौती दे डाली?
3. ‘शेर का बच्चा’ कौन था? उसके बारे में बताइए।
4. वह अपने टायटिल को सही प्रमाणित करने के लिए क्या करता था?



निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलाखिलाकर हँस पड़ते थे।

सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।

कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. अंधेरी रात का दृश्य कैसा था?
3. गाँव का वातावरण कैसा था?
4. कुत्तों के विषय में लेखक क्या कहता है?



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