बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। बच्चा चाँद लेने की हठ कर रहा है, माँ उसे बहलाने का प्रयास कर रही है।
व्याख्या: आँगन में खड़े होकर चाँद को देखकर बालक सुनकने लगता है और जिद पर उतर आता है। उसका जी चाँद पर ललचा जाता है और माँ से चाँद लेने का हठ करने लगता है। माँ बच्चे के हाथ में दर्पण (शीशा) देकर बहलाती है-’देख आईने (शीशे) में चाँद उतर आया है।’ यह चाँद की परछाईं भले ही हो, पर बच्चे के लिए तो चाँद है। माँ के इस प्रयास से बालक की जिद पूरी हो जाती है। बच्चे को लगता है कि उसे चाँद मिल गया।
विशेष: 1 ‘जिंदयाया’-विलक्षण प्रयोग है 1
2. ‘आईने में चाँद उतर आया’-कल्पना की आँख का एक रूप है।
3. वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।
4. उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
5. चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।
हाथों पे बुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी।
फिराक गोरखपुरी का जीवन-परिचय एवं साहित्यिक परिचय दीजिए तथा रचनाओं का उल्लेख भी कीजिए।
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।