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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से

उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके

किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को

जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।


प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। इस रुबाई में शायर ने उस स्थिति का भावपूर्ण चित्रण किया है जब एक माँ बच्चे को नहलाकर उसे कपड़े पहनाती है।

व्याख्या: माँ बच्चे को नहलाती है। बच्चे के बालों से निर्मल जल छलक रहा है। इससे उसके बाल उलझ गए हैं। माँ बालों को कंघी करके सुलझाती है। जब माँ बच्चे को अपने घुटनों के बीच में लेकर उसे कपड़े पहनाती है तब बच्चा बड़े प्यार के साथ माँ के मुँह को देखता है।

विशेष: 1. ‘घुटनियों में लेकर कपड़े पिन्हाना’- एक विलक्षण प्रयोग है। यह लोकभाषा का एक रूप है।

2. ‘छलके-छलके’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

3. ‘कंघी करके’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है।

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फिराक गोरखपुरी का जीवन-परिचय एवं साहित्यिक परिचय दीजिए तथा रचनाओं का उल्लेख भी कीजिए।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
रक्षा-बंधन की सुबह रस की पुतीली

छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी

बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे

भाई के है बाँधती चमकती राखी।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है

बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

हाथों पे बुलाती है उसे गोद-भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती है

गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।


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