छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी।
प्रसंग: प्रस्तुत रुबाई उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित है। इसमें शायर रक्षाबंधन के त्योहार का वर्णन करता है।
व्याख्या: शायर बताता है कि रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। इस दिन सुबह से ही भाई-बहन के रस का प्रवाह होने लगता है। रक्षाबंधन सावन मास में आता है। सावन का संबंध झीनी घटा से है। आसमान में हल्की-हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। इन घटाओं में बिजली चमक रही है। घटा का जो संबध बिजली से है-वही संबंध भाई का बहन से होता है। राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमकते हैं। जब बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधती है तो ये लच्छे और भी चमक उठते हैं।
विशेष: 1. रक्षाबंधन के त्योहार का बड़ा ही प्रभावी अंकन किया गया है।
2. ‘हलकी-हलकी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
4. भाषा सरल एवं सरस है।
हाथों पे बुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।
फिराक गोरखपुरी का जीवन-परिचय एवं साहित्यिक परिचय दीजिए तथा रचनाओं का उल्लेख भी कीजिए।
बालक तो हई चाँद पॅ ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।