Advertisement

शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?


शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह इसलिए करते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास का पूरा। अधिकार है। हमें ऐसे व्यक्तियों के साथ यथासंभव समान व्यवहार करना चाहिए। समाज के सभी सदस्यों को आरंभ से ही समान अवसर एव समान व्यवहार उपलब्ध कराये जाने चाहिए। व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। ‘समता’ यद्यपि काल्पनिक वस्तु है फिर भी सभी परिस्थितियो को दृष्टि में रखते हुए यही मार्ग (समता का) उचित है और व्यावहारिक भी है।

447 Views

Advertisement

लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?


सही में डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?


जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?


जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?


First 1 2 3 Last
Advertisement