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सही में डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?


डॉ. आंबेडकर भावनात्मक समत्व और मान्यता के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहते थे। जातिवाद की भावना भावनात्मक समता में बाधा उपस्थित करती है। भावनात्मक समता तभी प्रतिष्ठित हो पाएगी जब समान भौतिक स्थितियाँ व जीवन सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। जातिवाद के उन्मूलन होने पर ही यह संभव हो पाएगा। जातिवाद असमान व्यवहार को उचित ठहराता है। समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है तो यह तभी संभव है जब समाज के सभी सदस्यों को भौतिक स्थितियों व जीवन सुविधाओं को समान रूप से उपलब्ध कराया जाएगा। हाँ, हम सबसे सहमत हैं।

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शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. अंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?


लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?


जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?


जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?


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