लेखिका को भक्तिन अच्छी लगती है अत: वह उसके दुर्गुणों की ओर विशेष ध्यान नहीं देती। वह यह मानती है कि भक्तिन में भी दुर्गुण हैं उसके व्यक्तित्व में दुर्गुणों का अभाव होने के बारे में वह निश्चित तौर पर नहीं कह सकती। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती। वह रुपए-पैसों को मटकी में सँभाल कर रख देती है। वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए बात को इधर-उधर घुमाकर बताती है। इसे आप झूठ कह सकते हैं। इतना झूठ और चोरी तो धर्मराज महाराज में भी होगा। भक्तिन सभी बातों और कामों को अपनी सुविधा के अनुसार ढालकर करती है। इसी कारण लेखिका ने कहा है कि यह कहना कठिन है कि भक्तिन अच्छी है क्योंकि उसमें दुर्गुणों का आभाव नहीं है।
भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ मे स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करे या न करे अथवा किससे करे) को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । क्या इससे आप सहमत हैं?
भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया?