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रघुवीर सहाय के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


जीवन-परिचय: रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर, 1929 को लखनऊ ( उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनकी संपूर्ण शिक्षा लखनऊ में ही हुई। वहीं से उन्होंने 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. किया। रघुवीर सहाय पेशे से पत्रकार थे। आरंभ में उन्होंने प्रतीक में सहायक संपादक के रूप मैं काम किया। फिर वे आकाशवाणी के समाचार विभाग में रहे। कुछ समय तक वे कल्पना के संपादन से भी जुड़े रहे और कई वर्षा तक उन्होंने दिनमान का संपादन किया। उनका निधन 1990 ई. में हुआ।

रघुवीर सहाय नई कविता के कवि हैं। उनकी कुछ कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक में संकलित हैं। कविता के अलावा उन्होंने रचनात्मक और विवेचनात्मक गद्य भी लिखा है। उनके काव्य-संसार में आत्मपरक अनुभवों की जगह जनजीवन के अनुभवों की रचनात्मक अभिव्यक्ति अधिक है। वे व्यापक सामाजिक संदर्भो के निरीक्षण, अनुभव और बोध को कविता में व्यक्त करते हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ: रघुवीर सहाय ने काव्य-रचना में पत्रकार की दृष्टि का सर्जनात्मक उपयोग किया है। वे मानते हैं कि अखबार की खबर के भीतर दबी और छिपाई हुई ऐसी अनेक खबरें होती हैं जिनमें मानवीय पीड़ा छिपी रह जाती है। उस छिपी हुई मानवीय पीड़ा की अभिव्यक्ति करना कविता का दायित्व है।

रघुवीर सहाय को ‘नई कविता’ के समर्थ कवियों में गिना जाता है। वे रोजमर्रा के प्रसंगों को अपनी विशिष्ट काव्य शैली में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त हैं। उनकी पत्रकारिता उनकी कविता को जानदार एवं प्रासंगिक बनाती है। इससे उनकी कविताओं में एक खास किस्म की तथ्यात्मकता आ गई है और यह मात्र ‘तथ्य’ न रहकर ‘सत्य’ बन जाता है। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘दूसरा सप्तक’ (1952) के प्रमुख प्रयोगवादी कवि हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में रोजमर्रा के प्रसंगों को उठाकर विशिष्ट काव्य-शैली का परिचय दिया है। वे निश्चय ही आधुनिक काव्य भाषा के मुहावरे को पकड़ने वाले सशक्त कवि हैं।

रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील ‘नागर’ चेहरा हैं। सड़क चौराहा दफ्तर, अखबार ससद बस रेल और बाजार की बेलौस भाषा में उन्होंने कविता लिखी। घर-मुहल्ले के चरित्र रामदास गीता, सीता हरिया हरचरना पर कविता लिखी और इन्हें हमारी चेतना का स्थायी नागरिक बनाया। हत्या-लूटपाट और आगजनी राजनीतिक, भ्रष्टाचार और छल-छद्य इनकी कविता मे उतरकर खोजी पत्रकारिता की सनसनीखेज रपटें नहीं रह जाते आत्मान्वेषण का माध्य बन जाते हैं। यह ठीक है कि पेशे से ववेपत्रकार थे लेकिन वे सिर्फ पत्रकार नहीं थे सिद्ध कथाकार और कवि भी थे कविता को उन्होंने एक कहानीपन और एक नाटकीय वैभव दिया।

जातीय या वैयक्तिक स्मृतियाँ उनके यहाँ नहीं के बराबर हैं। इसलिए उनके दोनों पाँव वर्तमान में ही गड़े हैं। बावजूद इसके, मार्मिक उजास और व्यंग्य-बुझी खुरदुरी मुस्कानों से उनकी कविता पटी पड़ी है। छंदानुशासन के लिहाज से भी वे अनुपम हैं पर ज्यादातर बातचीत की सहज शैली में ही उन्होंने लिखा और बखूबी लिखा।

बतौर पत्रकार और कवि घटनाओं में निहित विडंबना और त्रासदी को- भी देखा। रघुवीर सहाय की कविताओं की दूसरी विशेषता है छोटे या लघु की महत्ता का स्वीकार। वे महज बड़े कहे जाने वाले विषय या समस्याओं पर ही दृष्टि नहीं डालते बल्कि जिनको समाज में हाशिए पर रखा जाता है उनके अनुभवों को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाते हैं। रघुवीर जी ने भारतीय समाज में ताकतवरों की बढ़ती हैसियत और सत्ता के खिलाफ भी साहित्य और पत्रकारिता के पाठकों का ध्यान खींचा। ‘रामदास’ नाम की उनकी कविता आधुनिक हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है।

रचनाएँ: रघुवीर सहाय की प्रथम समर्थ रचना ‘सीढ़ियों पर धूप’ (1960) है। इसके पश्चात् की रचनाएँ- ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो-हँसे जल्दी हँसे’ (1974), ‘लोग भूल गए है’ आदि। ‘लोग भूल गए हैं’ रचना पर उन्हें 1984 का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

भाषा-शैली: रघुवीर सहाय की अपनी काव्य-शैली है। उनकी भाषा सरल साफ-सुथरी एव सधी हुई है। उनकी भाषा शहरी होते हुए भी सहज व्यवहार वाली है, सजावट की वस्तु नहीं।

रघुवीर सहाय आधुनिक काव्य-भाषा के मुहावरे को पकड़ने में अत्यंत कुशल हैं।

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प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिवान

हम एक दुर्बल को लाएँगे

एक बंद कमरे में

उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?

तो आप क्यों अपाहिज हैं?

आपका अपाहिजपन तो दुःख देता होगा

देता है?

(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा)

हाँ तो बताइए आपका दुःख क्या है

जल्दी बताइए वह दुःख बताइए

बता नहीं पाएगा।

यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी. वी. पर ऐसे सामाजिक कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।


प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

एक और कोशिश

दर्शक

धीरज रखिए

देखिए

हमें दोनों एक संग रुलाने हैं

आप और वह दोनों

(कैमरा

बस करो

नहीं हुआ

रहने दो

परदे पर वकत की कीमत है)

अब मुस्कुराएँगे हम

आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम

(बस थोड़ी ही कसर रह गई)

धन्यवाद।

नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए-

उम्र पाँच साल, संपूर्ण रूप से विकलाग और दौड़ गया पाँच किलोमीटर। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन यह कारनामा कर दिखाया है पवन ने। बिहारी बुधिया के नाम से प्रसिद्ध पवन जन्म से ही विकलाग है। इसके दोनों हाथ का पुलवा नहीं है, जबकि पैर में सिर्फ एड़ी ही है।

पवन ने रविवार को पटना के कारगिल चौक से सुबह 8.40 पर दौड़ना शुरू किया। डाकबंगला रोड, तारामंडल और आर ब्लाक होते हुए पवन का सफर एक घटे बाद शहीद स्मारक पर जाकर खत्म हुआ। पवन द्वारा तय की गई इस दूरी के दौरान ‘उम्मीद स्कूल’ के तकरीबन तीन सौ बच्च साथ दौड़ कर उसका हौसला बड़ा रहे थे। सड़क किनारे खड़े दर्शक यह देखकर हतप्रभ थे कि किस तरह एक विकलांग बच्चा जोश एवं उत्साह के साथ दौड़ता चला आ रहा है। जहानाबाद जिले का रहने वाला पवन नव रसना एकेडमी, बेउर में कक्षा एक का छात्र है। असल में पवन का सपना उड़ीसा के बुधिया जैसा करतब दिखाने का है। कुछ माह पूर्व बुधिया 65 किलोमीटर दौड़ चुका है। लेकिन बुधिया पूरी तरह से स्वस्थ है जबकि पवन पूरी तरह से विकलांग। पवन का सपना कश्मीर से कन्या कुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है।

(9 अक्टूबर, 2006 हिंदुस्तान से साभार)


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