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प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

एक और कोशिश

दर्शक

धीरज रखिए

देखिए

हमें दोनों एक संग रुलाने हैं

आप और वह दोनों

(कैमरा

बस करो

नहीं हुआ

रहने दो

परदे पर वकत की कीमत है)

अब मुस्कुराएँगे हम

आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम

(बस थोड़ी ही कसर रह गई)

धन्यवाद।


प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ नई कविता के सशक्त कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘कैमरे में बद अपाहिज’ मे अवतरित हैं। इस कविता में कवि ने टेलीविजन कार्यक्रमों की संवेदनहीनता पर करार व्यंग्य किया है। यहाँ एक अपंग व्यक्ति पर तैयार किए जा रहे कार्यक्रम की वास्तविकता को उजागर किया गया है।

व्याख्या: कार्यक्रम संचालक अपंग व्यक्ति को रोते और कसमसाते हुए टी. वी. के परदे पर दर्शकों को दिखाना चाहता है। उसका भरपूर प्रयास रहता है कि अपाहिज व्यक्ति रोने लगे ताकि कार्यक्रम रोचक एवं प्रभावी बन जाए। संचालक एक और कोशिश करता है। वह दर्शकों से धैर्य रखने की अपील भी करता है। संचालक अपंग व्यक्ति और दर्शक दोनों को रुलाने की कोशिश में जुट जाता है। जब उसकी कोशिश पूरी तरह सफल नहीं हो पाती है तब वह अपने कैमरामैन को हिदायत देता है कि अब बस करो और यदि रोना संभव नहीं हुआ तो रहने दो। परदे पर समय की बड़ी कीमत है। कार्यक्रम को शूट करना काफी महँगा पड़ता है। हम इसके लिए ज्यादा समय और पैसा बर्बाद नहीं कर सकते। अब रोना-पीटना बंद करो। अब हमारे मुस्कराने की बारी है अर्थात् अब हम अपनी वास्तविकता पर लौट आएँगे। संचालक महोदय दर्शकों को बताते हैं कि हमने यह कार्यक्रम सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु दिखाया था, इसमें बस थोड़ी सी कमी रह गई अर्थात् रोने वाला सीन नहीं आ सका)।

इससे स्पष्ट है कि संचालक अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्यक्रम दिखा रहा था। वह एक व्यक्ति की अपंगता को भुनाने की कोशिश कर रहा था। साथ ही वह दर्शकों का धन्यवाद भी करता है।

विशेष: 1. यह टेलीविजन कार्यक्रमों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न लगाता है।

2. व्यंजना शक्ति का प्रभाव है।

3. ‘परदे पर’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. खड़ी बोली का प्रयोग है।

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प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिवान

हम एक दुर्बल को लाएँगे

एक बंद कमरे में

उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?

तो आप क्यों अपाहिज हैं?

आपका अपाहिजपन तो दुःख देता होगा

देता है?

(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा)

हाँ तो बताइए आपका दुःख क्या है

जल्दी बताइए वह दुःख बताइए

बता नहीं पाएगा।

यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी. वी. पर ऐसे सामाजिक कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।


नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए-

उम्र पाँच साल, संपूर्ण रूप से विकलाग और दौड़ गया पाँच किलोमीटर। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन यह कारनामा कर दिखाया है पवन ने। बिहारी बुधिया के नाम से प्रसिद्ध पवन जन्म से ही विकलाग है। इसके दोनों हाथ का पुलवा नहीं है, जबकि पैर में सिर्फ एड़ी ही है।

पवन ने रविवार को पटना के कारगिल चौक से सुबह 8.40 पर दौड़ना शुरू किया। डाकबंगला रोड, तारामंडल और आर ब्लाक होते हुए पवन का सफर एक घटे बाद शहीद स्मारक पर जाकर खत्म हुआ। पवन द्वारा तय की गई इस दूरी के दौरान ‘उम्मीद स्कूल’ के तकरीबन तीन सौ बच्च साथ दौड़ कर उसका हौसला बड़ा रहे थे। सड़क किनारे खड़े दर्शक यह देखकर हतप्रभ थे कि किस तरह एक विकलांग बच्चा जोश एवं उत्साह के साथ दौड़ता चला आ रहा है। जहानाबाद जिले का रहने वाला पवन नव रसना एकेडमी, बेउर में कक्षा एक का छात्र है। असल में पवन का सपना उड़ीसा के बुधिया जैसा करतब दिखाने का है। कुछ माह पूर्व बुधिया 65 किलोमीटर दौड़ चुका है। लेकिन बुधिया पूरी तरह से स्वस्थ है जबकि पवन पूरी तरह से विकलांग। पवन का सपना कश्मीर से कन्या कुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है।

(9 अक्टूबर, 2006 हिंदुस्तान से साभार)


रघुवीर सहाय के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


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