Advertisement

‘परदे पर वक्त की कीमत हे’ कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है?


‘परदे पर वक्त की कीमत है’ अर्थात् टेलीविजन के परदे पर किसी कार्यक्रम को दिखाना काफी महँगा पड़ता है। इसमें कम-से-कम समय लगाने की कोशिश की जाती है।

अपंग व्यक्ति और प्रश्नकर्त्ता के मध्य हुए साक्षात्कार के प्रति कवि ने यह नजरिया दर्शाया है कि साक्षात्कार लेकर टेलीविजन वाले अपने लिए रोचक कार्यक्रम बनाने के चक्कर में रहते हैं। वे दूरदर्शन के समय एवं परदे का इस्तेमाल अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु करते हैं, उन्हें उस व्यक्ति की कोई परवाह नहीं होती जिसका साक्षात्कार लिया जा रहा होता है (विशेष सामान्य व्यक्ति का) कार्यक्रम संचालक के सामने अपना हित सर्वोपरि होता है। उसकी सहानुभूति बनावटी होती है।

559 Views

Advertisement

कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं-आपकी समझ से इनका क्या औचित्य है?


यदि शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा?


हम समर्थ शक्तिमान और हम एक दुर्बल को लाएँगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?

‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है’-विचार कीजिए।


First 1 2 3 Last
Advertisement