जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को। कैसे संपन्न बनाया?
चार्ली ने जीवन में जद्दोजहद बहुत की थी। उनकी माँ परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थी। चार्ली को भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूँजीपति वर्ग तथा सामंतशाहों ने भी दुत्कारा। वे नानी की तरफ से खानाबदोशों के साथ जुड़े हुए थे। अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे।
इन जटिल परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया। इस संघर्ष के दौरान उन्हें जो जीवन-मूल्य मिले, वे उनके धनी होने के बावजूद अंत तक कायम रहे। उनके संघर्ष ने उनके व्यक्तित्व में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों का समावेश कर दिया। उसका व्यक्तित्व इस रूप में ढल गया जो अपने ऊपर हँसता है।
चैप्लिन ने न सिर्फ़ फि़ल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने और वर्ण व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
लेखक ने कलाकृति और रस के इसके संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण ने सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?