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‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।


‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता के लिए कवि ने उसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा है। जिस प्रकार चौके को राख से लीपकर पवित्र किया जाता है, उसी प्रकार प्रात:कालीन उषा भी पवित्र है।

आकाश की निर्मलता के लिए कवि ने ‘काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ का प्रयोग किया है। जिस प्रकार काली सिल को लाल केसर से धोने से उसका कालापन समाप्त हो जाता है और वह स्वच्छ निर्मल दिखाई देती है, उसी प्रकार उषा भी निर्मल, स्वच्छ है। उज्ज्वलता के लिए कवि ने ‘नील जल में किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ कहा है। जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीरी कांतिमान और सुंदर (उज्ज्वल) लगता है, उसी प्रकार भोर की लाली में (सूर्योदय में) आकाश की नीलिमा कांतिमान और सुंदर लगती है।

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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें
नील जल में या

किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

हिल रही हो।

और .........

जादू टूटता है इस उषा का अब:

सूर्योदय हो रहा है।


निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए-
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धूल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने।
1. काव्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
2. भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ क्यो कहा गया है?
3. सूर्योदय से पूर्व के आकाश के बारे में कवि ने क्या कल्पना की है?



शमशेर बहादुर सिंह के जीवन एवं साहित्य का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें
प्रात: नभ था-बहुत नीला, शंख जैसे,

भोर का नभ,

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है।)

बहुत काली सिल

जरा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो।

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने।

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