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अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।


सूर्योदय

लो पूर्व दिशा में उग आया

सूरज

लाल-लाल गोले के समान

चारों ओर लालिमा फैलती चली गई

और सभी प्राणी जड़ से चेतन

बन गए।

सूर्यास्त

सूरज हुक्के की चिलम जैसा लगता है,

इसे किसान खींच रहा है

पशुओं के झुंड चले आ रहे हैं

और पक्षियों की वापिसी की उड़ान

तेज हो चली है

धीरे-धीरे सब कुछ अदृश्य

हो चला है

और

सूरज पहाड़ की ओट दुबक गया।

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सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

● उपमान ● शब्दचयन ● परिवेश


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें
नील जल में या

किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे

हिल रही हो।

और .........

जादू टूटता है इस उषा का अब:

सूर्योदय हो रहा है।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें
प्रात: नभ था-बहुत नीला, शंख जैसे,

भोर का नभ,

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है।)

बहुत काली सिल

जरा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो।

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने।

शमशेर बहादुर सिंह के जीवन एवं साहित्य का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।


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