हृदय की कोमलता को बचाने के लिए कभी-कभी व्यवहार में कठोरता लानी जरूरी हो जाती है। शिरीष के फूलों की कोमलता को देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब कुछ कोमल है पर यह सच नहीं है। इसके फल इतने मजबूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। अंदर की कोमलता को बचाने के लिए ऐसा कठोर व्यवहार जरूरी हो जाता है।
द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?
कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिरप्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय-एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाइये।