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हाय वह अवधूत आज कहाँ है। ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?


हाय वह अवधूत आज कहाँ है? ऐसा कहकर लेखक ने वर्तमान समय में आत्मबल के पतन और देह-बल शारीरिक ताकत) की प्रमुखता से उत्पन्न संकट की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। अवधूत तो विषय-वासनाओं से ऊपर उठा महात्मा होता है। शिरीष उसका प्रतीक है। वर्तमान समय में लोगों का आत्मबल घटता जा रहा है। देह-बल उस पर हावी होता चला जा रहा है। इससे एक प्रकार का संकट उत्पन्न चला रहा है। अब अवधूतों की स्वीकार्यता भी घटती चली जा रही है। शारीरिक ताकत का प्रदर्शन ही सब कुछ होकर रह गया है।

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हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी भी हो जाती है-प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?


द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।


कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिरप्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय-एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाइये।


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