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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-  
एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुःख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हजरत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। जरूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे सुकुमारसर को कैसे उगा सकता था? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत-कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवा, पर सरस और मादक। कालिदास भी जरूर अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदूत’ का काव्य उसी प्रकार के अनासक्त अनाविल उत्उन्मुक्त हदय मे उमड़ सकता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?
1.  शिरीष को क्या बताया गया है और क्यों?
2.  एक वनस्पतिशास्त्री ने लेखक को क्या बताया है?
3.  कबीर किस प्रकार के थे?
4.  कालिदास के बारे में क्या बताया गया है? लेखक किसे कवि बताता है?


1.  शिरीष को एक अद्भुत अवधूत (संन्यासी) बताया गया है इसका कारण यह है कि शिरीष सुख-दु:ख में एक समान बना रहता है। वह किसी भी स्थिति में हार नहीं मानता। उसे किसी से कुछ लेना-देना नहीं होता। वह तो भयंकर गर्मी के मध्य से भी अपना रस खींच लेता है। यह आठों पहर मस्त बना रहता है।
2. एक वनस्पतिशास्त्री ने लेखक को बताया कि शिरीष उस श्रेणी का वृक्ष है जो वायुमंडल से अपना रस खींचते हैं। लेखक भी इस बात को मानता है क्योंकि भयंकर लू में इसके तंतुजाल कोमल बने रहते हैं। यह सुकुमार केसर को भी उगा लेता है।
3. कबीर बहुत कुछ शिरीष के समान मस्त, बेपरवाह, सरस और मादक थे। तभी उनके मुँह से सरस रचनाएँ निकली थीं।
4. कालिदास एक अनासक्त योगी रहे होंगे। जिस प्रकार शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से उपज सकते हैं, इसी प्रकार कालिदास के हृदय से ‘मेघदूत’ काव्य निकला होगा। लेखक का कहना है कि कवि के लिए अनासक्त रहना और फक्कड़ बने रहना आवश्यक है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वास्यायन ने ‘कामसूत्र’ में बताया है कि वाटिका के सघन छायादार वृक्षों की छाया में ही झूला (प्रेंखा दोला) लगाया जाना चाहिए। यद्यपि पुराने कवि बकुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे, पर शिरीष भी क्या बुरा है! डाल इसकी अपेक्षाकृत कमजोर जरूर होती है, पर उसमें झूलनेवालियों का वजन भी तो बहुत ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वजन का एकदम खयाल नहीं करते। मैं तुंदिल नरपतियों की बात नहीं कह रहा हूँ, वे चाहे तो लोहे का पेड़ बनवा लें। शिरीष का फूल संस्कृत-साहित्य में बहुत कोमल माना गया है। मेरा अनुमान है कि कालिदास ने यह बात शुरू-शुरू में प्रचार की होगी। उसका इस पुष्प पर कुछ पक्षपात था (मेरा भी है)। कह गए हैं, शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिल्कुल नहीं।
1. वात्स्यायन किसमें क्या बताया है?
2. पुराने कवि क्या देखना चाहते थे जबकि इस लेखक का क्या मत है?
3. शिरीष के कुल को सस्कृंत-साहित्य में क्या माना गया है?
4. कालिदास क्या कह गए है?


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
जहाँ बैठ के यह लेख लिख रहा हूँ उसके आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ शिरीष के अनेक पेड़ हैं। जेठ की जलती धूप में, जबकि धरित्री निर्धूम अग्निकुंड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों से लद गया था। कम फूल इस प्रकार की गर्मी में फूल सकने की हिम्मत करते हैं। कर्णिकार और आरग्वध (अमलतास) की बात मैं भूल नहीं रहा हूँ। वे भी आस-पास बहुत हैं लेकिन शिरीष के साथ आरग्वध की तुलना नहीं की जा सकती। वह पंद्रह-बीस दिन के लिए फूलता है, वसंत ऋतु के पलाश की भाँति। कबीरदास को इस तरह पंद्रह दिन के लिए लहक उठना पसंद नहीं था। यह भी क्या कि बस दिन फूले और फिर खंखड़-के-खंखड़-’दिन दस फूला फूलिके खंखड़ भया पलास!’ ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले। फूल है शिरीष। वसंत के आगमन के साय लहक उठता है, आषाढ़ तक जो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्द्यात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है।
1. जहाँ बैठकर लेखक यह लेख लिख रहा है वहाँ कैसा वातावरण है?
2. शिरीष के कुलों की क्या विशेषता बताई गई है?
3. कबीर का क्या कहना था?
4. शिरीष कब से कब तक फूलता है? वह क्या प्रचार करता जान पड़ता है?


आचार्य हजारी प्रमाद द्विवेदी का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं तथा भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखो।


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत् के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगाई थी-’धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना!’ मैं शिरीष के फूलों को देखकर कहता हूँ कि क्यों नहीं फूलते ही समझ लेते बाबा कि झड़ना निश्चित है! सुनता कौन है? महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं, जिनमें प्राणकण थोड़ा भी ऊर्ध्वमुखी है, वे टिक जाते हैं। दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा जाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे!
1. पुरान में क्या लिप्सा होती है? क्या बातें सत्य हैं?
2. तुलसी ने किस सच्चाई पर मुहर लगाई थी?
3. लेखक शिरीष के फूलों को देखकर क्या कहता है?
4. मूर्ख क्या समझते हैं? उन्हें क्या करना चाहिए?



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