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“यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उसके पार झाँक रहे हैं।” इसके पीछे लेखक का क्या आशय है?


लेखक इस वाक्य का प्रयोग मुअन जो-दड़ो जाने के बाद करता है। मुअन जो-दड़ो में सिन्धु सभ्यता के खण्डहर बिखरे हैं। वास्तविकता में यह जगह केवल खंडहर वाली है। इतिहास यह बताता है कि यहाँ कभी पूरी आबादी अपना जीवन व्यतीत करती थी। पुरातात्विक या ऐतिहासिक स्थान का महत्त्व सामान्य तौर पर ज्ञान से सबंधित होता है। लेखक इस ज्ञान के अलावा भी कुछ और जानना चाहता है। जानने से अधिक वह महसूस करना चाहता है। उसे लगता है कि जिस मकान के खंडहर में वह खड़ा है, उसी मकान में जीवन भी था। लोग उस मकान में रहते थे, अपना पूरा जीवन बिताते थे। मुअन जो-दड़ो के खंडहरों के साथ उसे उसी तरह का अनुभव होता है। वह अपनी कल्पना के सहारे उस हजारों साल के पहले के जीवन को अपनी आँखों से देखने की कोशिश करता है। इन पंक्तियों का आशय यही है।

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सिन्धु सभ्यता साधन सम्पन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था, कैसे?


सिन्धु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य बोध है जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज पोषित था। ऐसा क्यों कहा गया?


यह पुरातत्त्व के किन चिन्हों के आधार पर आप कह सकते हैं कि “सिन्धु सभ्यता ताकत से शासित की होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।


टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनहुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।


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