आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
अथवा
आपके विचार से पड़ाई-लिखाई के संबंध में ‘जूझ’ पाठ के लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
लेखक विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पढ़ना चाहता है। दत्ताजी राव उसकी उस भावना से सहमत थे। पढ़ाई-लिखाई के संबंध में इन दोनों का रवैया हर तरह से सही हैं जबकि लेखक के पिता खुद अपने बेटे को नहीं पढ़ाना चाहते हैं। आधुनिक समाज में एवं किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिक्षा के महत्त्व से इंकार नहीं किया जा सकता है। शिक्षा के महत्त्व को लेखक व दत्ता जी राव दोनों अच्छी तरह जानते हैं। लेखक के पिता के लिए खेती ही सबसे महत्वपूर्ण है जबकि आधुनिक जीवन में खेती का महत्त्व लगातार कम होता जा रहा है। अत: यह सिद्ध होता है कि दत्ता जी राव और लेखक का ही रवैया सही था।
‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
अथवा
‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
अथवा
कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका पर ‘जूझ’ कहानी के आधार पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री सौंदलगेकर के व्यक्तित्व की उन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए जिनके कारण ‘जूझ’ के लेखक के मन में कविता के प्रति लगाव उत्पन्न हुआ।
अथवा
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं का उल्लेख करें जिन्होंने कविताओं के प्रति ‘जूझ’ पाठ के लेखक के मन में रुचि जगाई।
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
अथवा
‘जूझ’ कहानी के लेखक में कविता-रचना के प्रति रुचि कैसे उत्पन्न हुई? पाठ के आधार पर बताइए।