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ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (एक निर्जीव गुड़िया) को संबोधित चिट्ठी की शक्ल में लिखने की जरूरत क्यों महसूस की होगी?


ऐन की डायरी पढ़ने से हमें पता चलता है कि वह संवेदनशील एवं अंतर्मुखी लड़की थी। वह एक जगह कहती हैं कि “मैं सचमुच उतनी घमंडी नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं।” इसी प्रकार वह यह भी कहती है कि, “काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफसोस, ऐसा व्यक्ति अब तक नहीं मिला है इसीलिए तलाश जारी रहेगी।”

स्पष्ट है कि ऐन की बातों को समझने की क्षमता न तो उसके परिवार के किसी सदस्य में थी और न ही साथ रहने वाले दूसरे लोगों में। वह कहती भी है कि “किसी और की तुलना में वह अपनी कई कमजोरियों और खामियों को बेहतर तरीके से जानती है।” स्पष्ट है कि वह खुद को औरों से बेहतर समझती है। अपनी डायरी में अपनी गुड़िया को वह पत्र लिखती है गुड़िया को पत्र लिखते हुए अपरोक्ष रूप से वह खुद से ही बातें करती है। वह जानती है कि जिन बातों को वह लिख रही है, शायद उन्हें दूसरे व्यक्ति ठीक ढंग से न समझ पायें। इसीलिए उसे अपनी गुड़िया को सम्बोधित करते हुए पत्र लिखना पड़ा।

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“यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज़ है।” एक ऐसी आवाज, जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।” इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार कीजिए।


“ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज़ है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है।” इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमति या असहमति तर्कपूर्वक व्यक्त करें।


“काश, कोई तो होता, जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफ़सोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला........।” क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छिपा है?


'प्रकृति-प्रदत्त प्रजनन-शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें-इसकी स्वतंत्रता स्त्री से छीन कर हमारी विश्व-व्यवस्था ने न सिर्फ स्त्री को व्यक्तित्व विकास के अनेक अवसरों से वंचित किया है बल्कि जनांधिक्य की समस्या भी पैदा की है'। ऐन की डायरी के 13 जून, 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के संदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूँढे।


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