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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्द्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। उपनाम रखने की प्रतिभा होती, तो मैं सबसे पहले उसका प्रयोग अपने ऊपर करती, इस तथ्य को वह देहातिन क्या जाने, इसी से जब मैंने कंठी माला देखकर उसका नया नामकरण किया तब वह भक्तिन-जैसे कवित्वहीन नाम को पाकर भी गद्गद हो उठी।
1.    भक्तिन की तुलना किससे की गई है और क्यों?
2.    भक्तिन और लेखिका दोनों के नामों को दुर्वह क्यों कहा गया है?
3.    ‘सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है’ वाक्य को एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
4.    लेखिका ने भक्तिन को समझदार क्यों कहा है?


1. भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की गई है। हनुमान जी राम के अनन्य सेवक थे। इसी प्रकार भक्तिन लेखिका की अनन्य सेविका थी।
2. भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। यह नाम उसकी गरीबी की दशा के विपरीत था। यह नाम उसके लिए दुर्वह था। इसी प्रकार लेखिका का नाम महादेवी भी उन्हें दुर्वह प्रतीत होता है। इससे उनके अत्यधिक बड़े होने का अहसास होता है। उन्हें यह नाम विशाल प्रतीत होता है।
3. वास्तविकता में कई बार विरोधाभास होता है। जैसे एक झगड़ालू स्त्री का नाम शांति रख दिया गया हो। यह नाम उसके लिए विरोधाभासी लगेगा।
4. लेखिका ने भक्तिन को समझदार इसलिए कहा है क्योंकि वह अपना असली नाम (लक्ष्मी) किसी को नहीं बताती। यह नाम तो समृद्धि सूचक है। इस नाम को सुनकर और उसकी दशा को देखकर लोग उसका मजाक उड़ाएंगे। वह हँसी का पात्र नहीं बनना चाहती। अत: वह समझदार है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
एक दिन माँ की अनुपस्थिति में वर महाशय ने बेटी की कोठरी में घुसकर भीतर से द्वार बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँव वालों को बुलाने लगे। अहीर युवती ने जब इस डकैत वर की मरम्मत कर कुंडी खोली, तब पंच बेचारे समस्या में पड़ गये। तीतरबाज युवक कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दुध-का-दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला-हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनो में एक सच्चा हो चाहे दोनों झुठे; पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने ओठ काटकर लहू निकाल लिया और माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुये गाय-डोर, खेती-बारी अब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुँचने पर जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अत: दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।
1. एक दिन बेटी के साथ क्या घटित हुआ?
2. बेटी ने डकैत वर के साथ क्या व्यवहार किया?
3. पंचायत ने किस आधार पर क्या निर्णय दिया?
4. दामाद क्या करता था और बेटी किस स्थिति में रहती थी?
5. घर की आर्थिक स्थिति कैसी हो गई?



निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अत: यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लगीं और मान न मान मैं तेरा मेहमान की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी प्रकार की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे।
1. भक्तिन का दुर्भाग्य क्या था? उसके दुर्भाग्य में किसे, क्या दिखाई दिया?
2. जिठौत ने क्या उपाय ढूँढ निकाला?
3. उस प्रस्ताव का क्या हश्र हुआ?
4. इसका माँ-बेटी तथा वर के समर्थकों पर क्या प्रभाव पड़ा?


महादेवी वर्मा के जीवन का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम एवं साहित्यिक वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए तथा भागा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुःख ही अधिक है। जब उसने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी ओर दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया।

जिठानियाँ बैठकर लोक-चर्चा करतीं और उनके कलूटे लड़के धूल उड़ाते; वह मट्ठा फेरती, कुटती, पीसती, राँधती और उसकी नन्हीं लड़कियाँ गोबर उठातीं, कडे पाथती। जिठानियाँ अपने भात पर सफेद राब रखकर गाढ़ा दूध डालती और अपने लड़कों को औटते हुए दूध पर से मलाई उतारकर खिलाती।। वह काले गुड़ की डली के साथ कठौती में मरा पाती और उसकी लड़कियाँ चने-बाजरे की घुघरी चबातीं।
1. पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।
2. लछमिन के जीवन के दूसरे परिच्छेद में क्या हुआ?
3. जिठानियाँ क्या करती थीं?
4. लछमिन की लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था?



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