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'... उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं ...'
क्या आप लेखक की इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण भी बताइए।


‘उन जंजीरों को तोड़ने का, जिनमें वे जकड़े हुए है, कोई न कोई तरीका लोग निकाल लेते हैं’ - इस वक्तव्य से हम पूर्णतया सहमत हैं क्योकि मनुष्य स्वभावानुसार अधिक समय तक बंधनों मे नहीं रह सकते। किसी-न-किसी चीज का सहारा पाकर उन बंधनों की जंजीरें अवश्य टूटती हैं और वे स्वच्छंदता को प्राप्त करते हैं। ठीक वैसे ही पुडुकोट्टई जिले की महिलाओं के साथ भी हुआ। वे भी रूढ़िवादिता व पुरुष प्रधान समाज की जंजीरों में जकड़ी थीं-लेकिन साइकिल चलाने से उनके जीवन में इतना परिवर्तन आया कि उनका जीवन ही बदल गया। उनमें आत्मसम्मान की भावना जागृत हुई इससे वे आत्मनिर्भर भी हो गईं। अब वे सभी कार्य आसानी से कर सकती हैं। पुरुष वर्ग भले ही कुछ भी कहे वे इसकी परवाह नहीं करतीं। साइकिल चलाना उनकी ‘आजादी का प्रतीक बन गया।
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शुरूआत में पुरुषों ने इस आदोलन का विरोध किया परंतु आर साइकिल के मालिक ने इसका समर्थन किया, क्यों?

'... उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं ...'
आपके विचार से लेखक ‘जंजीरों’ द्वारा किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है?

‘साइकिल आंदोलन’ से पुड़ुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में कौन-कौन से बदलाव आए हैं?

प्रारंभ में इस आंदोलन को चलाने में कौन-कौन सी बाधा आई?

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