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कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?


कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् वह इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है ऐसे में वह प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रहीं है। उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है। अत: उसे लगता है उसके द्वारा की जा रही सारी साधना व्यर्थ हुई जा रही है इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के प्रयास भी विफल होते जा रहे हैं।

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भाव स्पष्ट कीजिए -
जेब टटोली कौड़ी न पाई।


भाव स्पष्ट कीजिए-
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अंहकारी।


'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?  


कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?


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