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कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?


कवयित्री का घर जाने की चाह से तात्पर्य है प्रभु से मिलना। कवयित्री इस भवसागर को पार करके अपने परमात्मा की शरण में जाना चाहती है क्योंकि जहाँ प्रभु हैं वहीं उसका वास्तविक घर है।

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'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?  


कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?


भाव स्पष्ट कीजिए -
जेब टटोली कौड़ी न पाई।


भाव स्पष्ट कीजिए-
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अंहकारी।


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