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भाव स्पष्ट कीजिए-
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अंहकारी।


कवयित्री कहती है कि मनुष्य को भोग विलास में पड़कर कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग अपनाने को कह रही है।मनुष्य जब सांसारिक भोगों को पूरी तरह से त्याग देता है तब उसके मन में अंहकार की भावना पैदा हो जाती है। अत:भोग-त्याग, सुख-दुःख के मध्य का मार्ग अपनाने की बात यहाँ पर कवयित्री कर रही है। भाव यह की भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं  कर सकता।

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कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?


भाव स्पष्ट कीजिए -
जेब टटोली कौड़ी न पाई।


कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?


'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?  


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