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निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए, जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है-
(i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
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(ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
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(iii) पुजारी से प्रसाद/ फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन: स्थिति।
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(iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
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(i) नहीं खेलना रूकता उसका
नहीं ठहरती वह पल- भर
मेरा हृदय काँप उठता था
बाहर गई निहार उसे।

(ii) ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
पाकर समुदित रवि-कर-जाल।

(iii) भूल गया उसका लेना झट
परम लाभ-सा पाकर मैं।
सोचा, बेटी को माँ के ये
पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

(iv) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी
तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी
तुझको दे न सका मैं हा!

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निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
इस कविता का केंद्रीय भाव शब्दों में लिखिए।

सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?

बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?

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