वैभव से मनुष्य को ढेर सारी चीन्ताए और थोड़ी-सी हँसी-खुशी प्राप्त होती है | इसके अतिरिक्त उसे चमक-दमक दिखाने का अवसर और क्षणिक भोग-विलास प्राप्त होता है |
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धन-संपति किसलिए है ?
सुख-समृद्धि के अधीन मानव का क्या होता है ?
फणिबंध से कौन छुड़ाते है ?
काव्य-पंक्तिका आशय स्पष्ट किजिए | वैभव-विलास की चाह नही, अपनी कोई परवाह नही, बस यही चाहता हू केवल, दान की देव सरिता निर्मल, करतल से झरती रहे सदा, निर्धन को भरती रहे सदा |