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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष

अंगना-अग से लिपटे भी

आतंक-अंक पर काँप रहे हैं

धनी, वज्र गर्जन से, बादल।

त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।


प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से अवतरित हैं। इसमें कवि ने पूँजीपति वर्ग की विलासप्रियता पर भी क्राति के भय की छाया को रेखांकित किया है।

व्याख्या: कवि बताता है कि पूँजीपतियों ने आर्थिक साधनों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर रखा है। उनके खजानों में अथाह धन जमा है, फिर भी अधिक धन जमा करने की उनकी लालसा कम नहीं हुई है। उन्हें अभी भी संतोष नहीं हुआ है। क्रांति की भीषण गर्जना सुनकर ये शोषक (पूँजीपति) इतने भयभीत हो जाते हैं कि अपनी सुदर स्त्रियों (रमणियों) के आलिंगन पाश में बँधे होने पर भी काँपते रहते हैं। उनकी सुख-शांति भंग हो जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली हैं और मुख ढक लिया है। उन पर क्राति का आतंक बुरी तरह छा गया है।

विशेष: 1. कवि ने पूँजीपतियों के विलासी जीवन पर कटाक्ष किया है।

2. ‘अगना अंग’ तथा ‘आतंक अंक’ में अनुप्रास अलंकार है।

3. कविता का मूल स्वर प्रगतिवादी है।

4. तत्सम शब्दो का प्रयोग हुआ है।

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निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर दीजिए:
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
1. क्रांति की संभावना पर शोषक-वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? काव्याशं के आधार पर लिखिए।
2. थका-हारा किसान बादल का आह्वान क्यों कर रहा है?
3. बादल के लिए ‘विप्लव के वीर’ और ‘जीवन के पारावार’ संबोधनों का प्रयोग क्यों किया गया है?



निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर दीजिए:
“हँसते हैं छोटे पौधे लघु भार-
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते
विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।”
1. इन पंक्तियों में कवि ने क्या बताना चाहा है?
2. इस काव्याशं का शिल्पगत सौदंर्य स्पष्ट करो।
3. ‘छोटे पौधे’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करो।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर

तुझे बुलाता कृषक अधीर

ऐ विप्लव के वीर!

चूस लिया है उसका सार

हाड़ मात्र ही हैं आधार,

ऐ जीवन के पारावार!


निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के उत्तर दीजिए:
घन, भेरी-गर्जन मे सजग, सुप्त अकुंर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं ई विप्लव के बादल?
1.  कवि बादलों को क्या मानता है?
2.  इस काव्याशं में प्रयुक्त अलंकार सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
3.  इसका भाषागत सौदंर्य बताइए।


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