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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु :ख दूना।।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उस का तू कर पूजन


प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुःख. और सुख तो आते रहते हैं, पर दु:ख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।

व्याख्या- कवि कहता है कि हे मेरे मन, जीवन में आने वाले दु:ख के समय छाया रूपी सुख को मत छूना क्योंकि इससे दु:ख कम नहीं होता बल्कि वह दो गुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान- शौकत है और न ही धन-दौलत। मेरे पास न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूंजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा तो केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चांदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन, जो अति मुश्किल सच्चाई है; वास्तविकता है- तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।

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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर श्री गिरिजा कुमार माथुर की मानसिक सबलता पर टिप्पणी कीजिए।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दु:ख दूना।
जीबन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी:
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
अवतरण में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।


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