प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री गिरिजा कुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुःख. और सुख तो आते रहते हैं, पर दु:ख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- कवि कहता है कि हे मेरे मन, जीवन में आने वाले दु:ख के समय छाया रूपी सुख को मत छूना क्योंकि इससे दु:ख कम नहीं होता बल्कि वह दो गुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान- शौकत है और न ही धन-दौलत। मेरे पास न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूंजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा तो केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चांदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन, जो अति मुश्किल सच्चाई है; वास्तविकता है- तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।