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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।


प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्‌य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग- 2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है। जिस के रचयिता रीतिकालीन कवि देव है। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम भाव को प्रकट किया है।

व्याख्या- कवि कहता है कि बसंत ऋतु आ गई। बसंत एक नन्हें बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पलों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उस के शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। अर्थात् बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धज कर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। देव कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाजों में उस से बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजा कर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है। कमल की कली रूपी नायिका सिर पर लता रूपी साड़ी से सिर ढांप कर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नजर उतार रही है। अर्थात् वह बालक बसंत को दूसरों की बुरी नजर से बचाने का वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ किसी बच्चे की नजर उतारने के लिए उस के सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका किया करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है जिसे प्रात: होते ही गुलाब चुटकियाँ बजा कर जगाते हैं। अर्थात् गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।

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देव की कविता में शब्द भंडार पर टिप्पणी कीजिए।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई।।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रसंग सहित व्याख्या कीजिये:
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फेल्यो आंगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें टाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

पठित पदों के आधार पर देव के चाक्षुक बिंब विधान को स्पष्ट कीजिए।

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