चंपा को इस पर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी?
चंपा को इस बात पर विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी। वह गांधी बाबा को अच्छा आदमी मानती है और उसकी दृष्टि में पढ़ने-लिखने की बात कहने वाला अच्छा नहीं हो सकता।
व्यंग्यार्थ यह है कि पक्ष-लिखकर व्यक्ति अपनी सहजता खो बैठता है। तब वह शोषक व्यवस्था का एक अंग बन जाता है। शोषक कभी आम आदमी के भले की बात नहीं कह सकता।
आपके विचार में चंपा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढूँगी?
चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे?
कवि ने चंपा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
यदि चंपा पड़ी-लिखी होती, तो कवि से कैसे बातें करती?