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यदि चंपा पड़ी-लिखी होती, तो कवि से कैसे बातें करती?


यदि चंपा पड़ी-लिखी होती तो वह कवि से सोच-समझकर बात करती। तब शायद उसमें उतनी सहजता नहीं होती, जितनी अब है। उसकी बातों में बनावटीपन की झलक हो सकती थी।

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आपके विचार में चंपा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढूँगी?


कवि ने चंपा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?


चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे?


चंपा को इस पर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी?


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