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तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुःख की छाया

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया।


हे विप्लव के बादल! जन-मन की आकांक्षाओं से भरी तेरी (बादल की) नाव समीर रूपी सागर पर तैर रही है। संसार के सुख अस्थिर हैं। इन अस्थिर सुखों पर दु:ख की छाया दिखाई दे रही है। संसार के लोगों का हृदय दु:खों से दग्ध (जला हुआ) है। इस दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव अर्थात् क्रांति की माया (जादू) फैली हुई है अर्थात् बादलों का आगमन ग्रीष्मावकाश से दग्ध पृथ्वी को आनंद देता है वैसे ही क्रांति का आगमन शोषित वर्ग को सुखी बनाता है।

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बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?


विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति विप्लव-रव से् क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?

अशनि-पाठ मे शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?

अस्थिर सुख पर दुःख की छाया पंक्ति में दुःख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?

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