अमेरिका में गेहूँ की खेती में आएं उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट से हम क्या सबक ले सकते हैं?
अमेरिका में गेहूँ की खेती में आएं उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट को देखते हुए हम कह सकते हैं कि:
(i) हम पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता की सराहना करते हैं। यदि हम प्राकृतिक संसाधनों को आँख बंद करके नष्ट कर देते हैं, अंत में, सभी मानव अस्तित्व खतरे में होंगे। मनुष्य को पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए।
(ii) उन्नीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में गेहूँ पैदा करने वाले किसानों ने ज़मीन के हर संभव हिस्से से घास साफ़ कर डाली थी। ये किसान ट्रैक्टरों की सहायता से इस ज़मीन को गेहूँ की खेती के लिए तैयार कर रहे थे। रेतीले तूफ़ान इसी असंतुलन से पैदा हुए थे। यह सारा क्षेत्र रेत के एक विशालकाय कटोरे में बदल गया था यानी खुशहाली का सपना एक डरावनी हकीकत बनकर रह गया था।
(iii) प्रवासियों को लगता था कि वे सारी ज़मीन को अपने कब्ज़े में लेकर उसे गेहूँ की लहलहाती फ़सल में बदल डालेंगे और करोड़ों में खेलने लगेंगे। लेकिन तीस के दशक में उन्हें यह बात समझ में आई की के पर्यावरण के संतुलन का सम्मान करना कितना ज़रूरी है।
इससे हमें यह सिख मिलती कि हमें पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए तथा उसके साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए।
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