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Class 10
Class 12
शास्त्री जी के लिए कर्मा ही ईश्वर था | बिना किसी फल की आशा के वे सपूर्ण भाव से कर्मा में लगे रहते थे | जब भी उन्हें अपने कर्मा का फल पाने के अवसर मिले, उन्होंने उनकी उपेक्षा की | फल पाने के लालच से उन्होंने कभी कोई काम नहीं किया | शास्त्री जी के इस स्वभाव को देखते हुआ उन्हें केवल 'कर्मयोगी' कहना पर्याप्त नहीं है | उन्हें निष्काम कर्मयोगी ही कहना अधिक उचित है |
"शात्री जी का सपूर्ण जीवन श्रम, सेवा, सादगी, और समर्पण का अनुपम उदाहरण है |"
संवाद को आगे बधाईए | (जिसमे काम-से-काम-आठ से दस प्रश्न और जवाब हो )