Q1निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (2 × 6 = 12)
पता नहीं क्यों, उनकी कोई नौकरी लंबी नहीं चलती थी। मगर इससे वह न तो परेशान होते, न आतंकित, और न ही कभी निराशा उनके दिमाग में आती। यह बात उनके दिमाग में आई कि उन्हें अब नौकरी के चक्कर में रहने की बजाय अपना काम शुरू करना चाहिए। नई ऊँचाई तक पहुँचने का उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया। सत्य है, जो बड़ा सोचता है, वही एक दिन बड़ा करके भी दिखाता है और आज इसी सोच के कारण उनकी गिनती बड़े व्यक्तियों में होती है। हम अक्सर इंसान के छोटे—बड़े होने की बातें करते हैं, पर दरअसल इंसान की सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। स्वेट मार्डेन अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ज कमाल' में लिखिते हैं कि यदि आप दरिद्रता की सोच को ही अपने मन में स्थान दिए रहेंगे, तो आप कभी धनी नहीं बन सकते, लेकिन यदि आप अपने मन में अच्छे विचारों को ही स्थान देंगे और दरिद्रता, नीचता आदि कुविचारों की ओर से मुँह मोड़े रहेंगे और उनको अपने मन में कोई स्थान नहीं देंगे, तो आपकी उन्नति होती जाएगी और समृद्धि के भवन में आप आसानी से प्रवेश कर सकेंगे। 'भारतीय चिंतन में ऋषियों ने ईश्वर के संकल्प मात्र से सृष्टि रचना को स्वीकार किया है और यह संकेत दिया है कि व्यक्ति जैसा बनना चाहता है, वैसा बार—बार सोचे। व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।' सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाले व्यक्तियों का मानना है कि सफलता उनके मस्तिष्क से नहीं, अपितु उनकी सोच से निकलती है। व्यक्ति में सोच की एक ऐसी जादुई शक्ति है कि यदि व उसका उचित प्रयोग करे, तो कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। इसलिए सदैव बड़ा सोचें, बड़ा सोचने से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल होंगी, फायदे बड़े होंगे और देखते—देखते आप अपनी बड़ी सोच द्वारा बड़े आदमी बन जाएँगे। इसके लिए हैजलिट कहते हैं— महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान कृति बन जाती है।
पता नहीं क्यों, उनकी कोई नौकरी लंबी नहीं चलती थी। मगर इससे वह न तो परेशान होते, न आतंकित, और न ही कभी निराशा उनके दिमाग में आती। यह बात उनके दिमाग में आई कि उन्हें अब नौकरी के चक्कर में रहने की बजाय अपना काम शुरू करना चाहिए। नई ऊँचाई तक पहुँचने का उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया। सत्य है, जो बड़ा सोचता है, वही एक दिन बड़ा करके भी दिखाता है और आज इसी सोच के कारण उनकी गिनती बड़े व्यक्तियों में होती है। हम अक्सर इंसान के छोटे—बड़े होने की बातें करते हैं, पर दरअसल इंसान की सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। स्वेट मार्डेन अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ज कमाल' में लिखिते हैं कि यदि आप दरिद्रता की सोच को ही अपने मन में स्थान दिए रहेंगे, तो आप कभी धनी नहीं बन सकते, लेकिन यदि आप अपने मन में अच्छे विचारों को ही स्थान देंगे और दरिद्रता, नीचता आदि कुविचारों की ओर से मुँह मोड़े रहेंगे और उनको अपने मन में कोई स्थान नहीं देंगे, तो आपकी उन्नति होती जाएगी और समृद्धि के भवन में आप आसानी से प्रवेश कर सकेंगे। 'भारतीय चिंतन में ऋषियों ने ईश्वर के संकल्प मात्र से सृष्टि रचना को स्वीकार किया है और यह संकेत दिया है कि व्यक्ति जैसा बनना चाहता है, वैसा बार—बार सोचे। व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।' सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाले व्यक्तियों का मानना है कि सफलता उनके मस्तिष्क से नहीं, अपितु उनकी सोच से निकलती है। व्यक्ति में सोच की एक ऐसी जादुई शक्ति है कि यदि व उसका उचित प्रयोग करे, तो कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। इसलिए सदैव बड़ा सोचें, बड़ा सोचने से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल होंगी, फायदे बड़े होंगे और देखते—देखते आप अपनी बड़ी सोच द्वारा बड़े आदमी बन जाएँगे। इसके लिए हैजलिट कहते हैं— महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान कृति बन जाती है।
(क)गद्यांश में किस प्रकार के व्यक्ति के बारे में चर्चा की गई है। ऐसे व्यक्ति ऊँचाई तक पहुँचने का क्या उपाय अपनाते हैं?
(ख)गद्यांश में समृद्धि और उन्नति के लिए क्या सुझाव दिए गए हैं?
(ग)भारतीय विचारधारा में संकल्प और चिंतन का क्या महत्व है
(घ) गद्यांश में किस जादुई शक्ति की बात की गई है? उसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
(ङ) 'सफलता' और 'आतंकित' शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग और प्रत्यय का उल्लेख कीजिए।
(च) गद्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्य प्रयोग कीजिए
2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए— (2 × 4 = 8)
इस पृथ्वी पर
एक मनुष्य की तरह
मैं जीना चाहता हूँ
वे खत्म करना चाहते हैं
बैक्टेरिया की तरह
उनके तमाम हथकंडों के बावजूद
मैं नहीं मरता
उपेक्षा, भूख और तिरस्कार से लड़ते—झगड़ते
बढ़ गई है मेरी प्रतिरोधक सामर्थ्य
मैं मृत्यु से नहीं डरता
और अमरत्व में मेरा विश्वास नहीं
लेकिन मैं नहीं चाहता प्रतिदिन मरना
थोड़ा—थोड़ा
किंचित विनम्रता
किंचित अकड़
और मित्र हँसी के साथ
बेहतर सृष्टि के लिए
मैं एक पके फल की तरह टपकना चाहता हूँ
जिसे लपकने के लिए
झुक जाएँ एक साथ
असंख्य नन्हें—नन्हें हाथ
अधूरी लड़ाई बढ़ाने के लिए
फल के रस की तरह
मैं उनके रक्त में घुल जाना चाहता हूँ
मैं एक मनुष्य की तरह मरना चाहता हूँ।
(क) कवि की प्रतिरोध क्षमता कैसे बढ़ गई है? समझाइए।
(ख) कवि के 'हथकंडों' शब्द के प्रयोग का तात्पर्य क्या है?
(ग)'मैं नहीं चाहता प्रतिदिन मरना'— का आशय समझाइए।
(घ) पके फल की तरह टपकने की चाह क्यों व्यक्त की गई है?
Q10निम्नलिखित गद्याशं को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (2 + 2 + 1 =5)
खुद ऊपर चढ़ें और अपने साथ दूसरों को भी ऊपर ले चलें, यही महत्त्व की बात है। यह काम तो हमेशा आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है। व्यवहारवादी लोगों ने तो समाज को गिराया ही है।
(क) महत्त्व की बात क्या है और क्यों?
(ख) शाश्वत मूल्य क्या हैं? इन मूल्यों से समाज को क्या लाभ हैं?
(ग) समाज को पतन की ओर ले जाने वाले लोग कौन हैं?
Q14निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर संकेत बिंदुओं क आधार पर लगभग 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए— 5
(क) अपनी भाषा प्यारी भाषा
• अपनी भाषा का परिचय
• प्यारी क्यों है?
• अन्य भाषाओं से मेल
(ख) स्वच्छता अभियान
• क्या है
• क्यों और कैसे
• सुझाव
(ग) लड़कियों की शिक्षा
• समाज में लड़कियों का स्थान
• शिक्षा की अनिवार्यता और बाधाएँ
• सबकों सहयोग
(क) अपनी भाषा प्यारी भाषा
भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों को आदान-प्रदान करता है । अपनी बात को कहने के लिए और दूसरे की बात को समझने के लिए भाषा एक सशक्त साधन है ।
जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आकर होश सम्भालता है तब उसके माता-पिता उसे अपनी भाषा में बोलना सिखाते हैं । इस तरह भाषा सिखाने का यह काम लगातार चलता रहता है । प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अलग-अलग भाषाएं होती हैं । लेकिन उनका राज-कार्य जिस भाषा में होता है और जो जन सम्पर्क की भाषा होती है उसे ही राष्ट्र-भाषा का दर्जा प्राप्त होता है ।
हिन्दी एक भाषा है, इसकी लिपि देवनागरी है। 'हिन्दी' हिन्दुस्तान की पहचान है। वैसे भारत में असंख्य भाषाएँ बोली जाती हैं परन्तु हिन्दी इन सबमें विशिष्ट है। इस भाषा के माध्यम से पूरा भारत आपस में जुड़ा हुआ है। हिन्दी का जन्म ऐसे ही नहीं हुआ, यह विकास के विभिन्न चरणों से गुजरती हुई, इस शिखर पर आसीन हुई है। स्वतंत्रता के समय इसने देश को एकता के सूत्र में पिरो दिया। उसके हिन्दी जन-जन की भाषा बन गई। यह सभी भाषाओं का मेल है। इसमें हर भाषा के शब्द विद्यमान है। इसने उनके साथ ऐसा मेल किया कि वह उसके ही हो गए।
(ख) स्वच्छता अभियान
स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा चलायी गयी एक स्वच्छता मिशन है। यह अभियान 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145 वें जन्मदिन के अवसर पर भारत सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर शुरू किया गया था| यह राजघाट, नई दिल्ली जो की महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार का स्थान है, में शुरू किया गया था। भारत सरकार २ अक्टूबर 2019 तक भारत को स्वच्छ भारत बनाने का उद्देश्य रखी है जो की महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती होगी|
यह एक राजनीति मुक्त अभियान है और देशभक्ति से प्रेरित है। यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक जिम्मेदारी है और इस देश को स्वच्छ देश बनाने के लिए हर भारतीय नागरिक की भागीदारी की आवश्यकता है| इस अभियान को सफल बनाने के लिए विश्व स्तर पर लोगों ने पहल की है। शिक्षक और स्कूल के छात्र इसमें पूर्ण उत्साह और उल्लास के साथ शामिल हो रहे है और 'स्वच्छ भारत अभियान' को सफल बनाने का प्रयास कर रहे है| इसके अंतर्गत, मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक और स्वच्छता पहल की शुरूआत की है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में चबाने वाले पान, गुटखा और अन्य तम्बाकू उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
(ग) लड़कियों की शिक्षा
आज समय तेजी से बदल रहा है। पुरूषों के बराबर स्त्रियों की भी शिक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। सरकार द्वारा ऐसे अनेक योजनाएँ चलाए जा रहे हैं जिससे बालिकाओं के निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है। लोगों में जागरूकता फैलाने का काम स्वयंसेवी संस्थाएं कर रही हैं। आम चुनावों में महिलाओं को आरक्षण दिया जा रहा है। इन सब ने आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों का रूझान पढ़ाई की ओर कर दिया है। आज की लड़कियां घर और बाहर दोनों को संभाल रही हैं। सरकार द्वारा बालिका कल्याण हेतु अनेक योजनाएँ चलाए जा रहे हैं।
इन सब का परिणाम है कि दो दशक पूर्व और आज के बालिकाओं की स्थिति की तुलना करें तो हमें क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाई पड़ेंगे । आज का समाज तेजी से बदल रहा है। आज महिलाओं को पुरूषों के समकक्ष माना जा रहा है। बालिका शिक्षा से आज देश प्रगति की ओर बढ़ रहा है। बाल विवाह, दहेज प्रथा, महिला उत्पीड़न जैसी घटनाओं में कमी और जागरूकता आयी है। महिलाओं को समाज के अभिन्न अंग के रूप में पूरे विश्व में स्वीकार किया जाने लगा है। अतः हम पूरे विश्व में कहीं भी चले जाएंगे ऐसे परिवर्तन दिख जाएंगे ।लड़कियों को पढ़ाना आज भी भारत में कई स्थानों पर बुरा माना जाता है। उन्हें लड़कों के बराबर स्थान नहीं दिया जाता है। लोगों का मानना है कि लड़के वंश को बढ़ाते हैं, लड़कियाँ नहीं। अतः यह धारण उनकी शिक्षा के रास्ते में सबसे बड़ी बाधक है। उनके विकास के लिए शिक्षा बहुत आवश्यक है। शिक्षा उनके भविष्य को नई दिशा दे सकती है और उन्हें स्वाबलंबी बनाती है। हमें चाहिए कि माता-पिता को इस दिशा में समझाएँ। इसके लिए सरकार, विद्यालय तथा समाज के सहयोग की आवश्यकता है।