कॉपर (तांबे) के सल्फाइड अयस्क से कॉपर का निष्कर्षण किस प्रकार किया जाता है? निष्कर्षण के विभिन्न चरणों की व्याख्या रासायनिक समीकरणों सहित कीजिए। कॉपर के विद्युत अपघटनी परिष्करण का नामांकित आरेख खींचिए।
आधुनिक आवर्त सारणी का विकास डॉबेराइनर, न्यूलैंड तथा मेण्डेलीफ केप्रारंभिक प्रयासोंके कारण हो पाया है । इन तीनोंप्रयासों की एक-एक उपलब्धि और एक-एक सीमा की सूची बनाइए ।
डोबेराइनर (Dobereiner) उस समय तक ज्ञात तत्वों में केवल तीन त्रिक (Triads) ही ज्ञात कर सके थे, जिसके कारण उनका तत्वों को त्रिक (Triads) में वर्गीकरण (Classification) करने की पद्धति सफल तथा उपयोगी नहीं रही।
डॉबेराइनर ने बताया कि त्रिक के तीनों तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान (Atomic mass) के आरोही क्रम (increasing order) में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान (Atomic mass), अन्य दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान (Atomic mass) का लगभग औसत होता है।
ज़ॉन न्यूलैंड, ने उस समय तक ज्ञात तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम (आरोही क्रम) में वर्गीकृत किया। न्यूलैंड के समय ज्ञात तत्वों की संख्यां 56 थी। उन्होंने वर्गीकरण में सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से शुरू कर वर्गीकरण को थोरियम पर समाप्त किया।
न्यूलैंड ने बताया कि प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के समान है। उन्होंने इस वर्गीकरण की तुलना संगीत के अष्टक से की तथा इसका नाम "अष्टक का सिद्धांत ('Law of Octaves')" रखा। न्यूलैंड के वर्गीकरण को "न्यूलैंड का अष्टक सिद्धांत (Newlands' Law of Octaves)" के नाम से जाना जाता है।
न्यूलैंड के अष्टक (Newlands' Octave) में, सोडियम [sodium (Na)] लिथियम के बाद आठवें स्थान पर है, तथा दोनों के गुणधर्म लगभग समान हैं। उसी तरह बेरिलियम तथा मैग्निशियम के गुणधर्म समान हैं।
न्यूलैंड के अष्टक की सीमाएँ या दोष (Drawbacks of Newlands' Octaves)
न्यूलैंड के अष्टक का सिद्धांत केवल कैल्शियम तक ही लागू होता था, क्योंकि न्यूलैंड के अष्टक में कैल्शियम के बाद आने वाले प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व से नहीं मिलता है या था।
न्यूलैंड ने कोबाल्ट (Co) तथा निकेल (Ni) को समान गुणधर्म के आधार पर एक समूह में रखा, जबकि लोहा [आयरन (Iron) Fe] जिसका गुणधर्म कोबाल्ट (Co) तथा निकेल (Ni) के समान ही है, को इन दोनों तत्वों से काफी दूरी पर रखा।
न्यूलैंड ने कोबाल्ट (Co) तथा निकेल (Ni) को क्लोरीन (Cl) तथा फ्लोरीन (F) के साथ समान समूह में डाला, जबकि कोबाल्ट (Co) तथा निकेल (Ni) के गुणधर्म क्लोरीन (Cl) तथा फ्लोरीन (F) से बिल्कुल अलग हैं।
इस प्रकार न्यूलैंड के अष्टक का सिद्धांत केवल हलके तत्वों के लिये ही ठीक से लागू हो पाया।
मेन्डेलीफ ने ही तत्वों को उनके गुणधर्म के आधार पर वर्गीकृत किया।
मेन्डेलीफ ने हाइड्रोजन (H) से शुरू कर तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम (आरोही क्रम) में एक टेबुल में व्यवस्थित किया। मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी न्यूलैंड के आवर्त सारणी से मिलती थी।
मेन्डेलीफ ने रासायनिक गुणधर्मों के अंतर्गत तत्वों के ऑक्सीजन तथा हाईड्रोजन के साथ अभिक्रिया कर बनने वाले यौगिकों पर ध्यान केन्द्रित किया। मेन्डेलीफ ने ऑक्सीजन तथा हाईड्रोजन को इसलिये चुना कि वे अत्यंत सक्रिय हैं तथा अधिकांश तत्व हाईड्रोजन तथा ऑक्सीजन के साथ संयोग कर यौगिक बनाते हैं। मेन्डेलीफ ने तत्वों के हाईड्राइड तथा ऑक्साइड के सूत्रों को तत्वों के वर्गीकरण में मूलभूत गुणधर्म माना।
मेन्डलीफ के वर्गीकरण की सीमाएँ (Limitation of Mendeleev's Classification of Elements)
मेन्डलीफ ने कुछ अपेक्षाकृत कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्वों को ज्यादा परमाणु द्रव्यमान वाले तत्वों के बाद रखा। जैसे कि कोबाल्ट (परमाणु द्रव्यमान: 58.93) को निकेल (परमाणु द्रव्यमान: 58.71) के पहले रखा।
उस वैज्ञानिक का नाम लिखिए जिसने सर्वप्रथम यह दर्शाया कि किसी तत्त्व की परमाणु संख्या उसके परमाणु द्रव्यमान की तुलना में अधिक अधारभूत गुणधर्म है ।