आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों, “चोरी की बान में ही जू प्रवीने।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजाै न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे।।”
गुरुमाता द्वारा चने दिए जाने का प्रसंग क्या है?
A.
जब श्रीकृष्ण और सुदामा गुरुकुल में पढ़ते थे तो उन्हें गुरुमाता ने चने दिए जंगल में लकड़ी तोड़ते समय खाने हेतु।