हड्डपा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवशयक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे ? - Zigya
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हड्डपा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवशयक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे ?


हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची:

(i) चिकनी मिट्टी, (ii) पत्थर, (iii) ताम्बा, (iv) कांसा, (v) सोना, (vi) शंख, (vii) कार्निलियन, (viii) स्फटिक, (ix) क्वार्ट्ज़ (x) सेलखड़ी, (xi) लाजवर्द मणि, (xii) कीमती लकड़ी, (xiii)कपास, (xiv) उन, (xv) सुइयाँ, (xvi)फ्यान्स, (xvii) जैस्पर, (xviii) चकियाँ इत्यादि

कच्चे माल की सूची में से कई चीज़ें स्थानीय तौर पर मिल जाती थी जैसे: मृदा, लकड़ी परन्तु अधिकतर जैसे पत्थर, धातु, अच्छी गुणवत्ता वाली लकड़ी, इत्यादि बाहर से मंगवाई जाती थीं।

कच्चे माल को प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया गया था और ये थे:

  1. बस्तियों की स्थापना: हड़प्पा के लोगों ने उन स्थानों पर अपनी बस्तियों की स्थापना की जहाँ कच्ची सामग्री आसानी से उपलब्ध थी। उदाहरण के लिए नागेश्वर और बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था। इसी तरह अफगानिस्तान में शोर्तुघई जो अत्यन्त कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि के सबसे अच्छे स्त्रोत्र के पास स्थित था तथा लोथल जो कार्नेलियन, सेलखड़ी(दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से)और धातु (राजस्थान से) के स्त्रोत्रों के निकट स्थित था।
  2. अभियानों से माल प्राप्ति: अभियानों का आयोजन करके कच्चा माल प्राप्त करने की यह एक अन्य निति थी। इन अभियानों के माध्यम से वे स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताम्बा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया हैं जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा से भिन्न है।
  3. सुदूर क्षेत्रों से संपर्क: हड़प्पा सभ्यता के नगरों का पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ संपर्क था। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर स्थित था फिर भी इस बात के साक्ष्य मिले रहे है कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापारिक सम्बन्ध था।
    (i) तटीय बस्तियाँ: यह व्यापारिक संबंध समुद्रतटीय क्षेत्रों के समीप से (समुद्री मार्गो से) यात्रा करके स्थापित हुए थे। मकरान तट पर सोटकाकोह बस्ती तथा सुत्कगेंडोर किलाबंद बस्ती इन यात्राओं के लिए आवशयक राशन-पानी उपलब्ध कराती होगी। 
    (ii) मगान: ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज भी व्यापर के लिए महत्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान के मगान के नाम से जाने जाते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इंदरगोप के मनके, हाथी-दाँत अथवा धातु के कला तथ्य मिले हैं।
    (iii) दिलमुन: फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाँ पहुँचते थे। दिलमुन तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं। 
    (iv) मेसोपोटामिया: वस्तुत दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन को मेलुहा के नाम से जानते थे। मेसोपोटामिया के लेखों में मेलुहा से व्यपारिक संपर्क का उल्लेख है। पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात हुआ है कि मेसोपोटामिया में हड़प्पा की मुद्राएँ, तौल, मनके, चौसर के नमूने, मिट्टी की छोटी मूर्तियाँ मिली हैं।  इससे प्रतीत होता है कि हड़प्पाई लोग मेसोपोटामिया से व्यापर संपर्क रखते थे तथा सम्भवत: वे यहाँ से चाँदी एवं उच्च स्तर की लकड़ी प्राप्त करते थे। 


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