प्रायद्वीपीय पठार की महत्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें ?
भारत का प्रायद्वीपीय पठार उतरी मैदान के दक्षिण में तथा भारत के दक्षिणी सीरा तक फैला है। प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है। जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रुपान्तरित शैलों से बना है। यह त्रिभुजाकार है। यह सबसे प्राचीनतम और स्थाई भूभाग है।
इस पठार के दो मुख्य भाग है:
1. मध्य उच्च भाग और 2. दक्कन का पठार
1. नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है ।
2. प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित हैं जिसे दक्कन के पठार के नाम से जाना जाता है। यह एक त्रिभुजाकार भूभाग है जो उतर में चौड़ा तथा दक्षिणी भाग में पतला होता गया। इसका निर्माण लावा प्रवाह से हुआ है। ज्वालामुखी उद् भेदन के कारण इसका बड़ा भाग बैशाल्ट के शैलों से बना है। इसका विस्तार उतर में सतपुड़ा तक है और महादेव की पहाड़ियाँ, कैमुर की पहाड़ियाँ, मैकाल की पहाड़ियाँ इसके पूर्वोतर विस्तार को दर्शाता है। दक्कन का पठार पश्चिम में पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट के बीच स्थित है। पश्चिमी घाट की औसतन ऊँचाई लगभग 900 से 1600 मीटर तथा पूर्वी घाट की ऊँचाई 600 मीटर है। इसलीए पठार पश्चिम की ओर ऊँचा तथा पूर्व की ओर ढालू है। दक्कन के पठार के काली मृदा के क्षेत्र को दक्कन ट्रैप के नाम से जाना जाता है।