प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका में छपवाने के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता था कि वे अति साधारण थे और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसे पढ़-सुन कर लोग वाह-वाह कर उठें। कवि ने यथार्थ के साथ- साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।
व्याख्या- जो लोग कवि की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा को सुनकर कहीं वे ही यह न समझने लगें कि वही उसकी जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आप को समझें; अपने को पहचानें। वे उसके भावों रूपी रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो, यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य कर रहा था, उनकी हंसी उड़ा रहा था। वह अपने द्वारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करें? उसे आत्मकथा के नाम से अपनी या औरों की बातें जग जाहिर नहीं करनीं। उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा ही नहीं है। उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता क्योंकि वे उसकी पूर्ण रूप से निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। जब वह कभी अपनों के साथ खिलखिला कर हँसा था, मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि ने अपने जीवन की कहानी किसी को न सुनाने के बारे में सोचा था क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि उसके जीवन में कुछ भी ऐसा सुखद नहीं था जो किसी को सुख दे सकता था। उसके पास केवल सुखद यादें अवश्य थीं।
व्याख्या- कवि कहता है कि उसे अपने जीवन में किसी सुख की प्राप्ति कभी नहीं हुई। सपने में जिस सुख को अनुभव कर वह अपनी नींद से जाग गया था, वह भी उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख देने वाला उसके आलिंगन में आते-आते धीरे से मुस्करा कर उससे दूर हो गया, उसे प्राप्त नहीं हुआ। जो सपने में सुख और प्रेम का आधार बना था वह अपार सुंदर था, मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हो गई थी। भाव है कि उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी राह पर चलते हुए, थक कर चूर हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही एक सहारा थी। उसकी यादें ही उसकी थकान को कुछ कम करती थीं। कवि नहीं चाहता कि उसकी मधुर यादों के आधार को कोई जाने। वह पूछता है कि क्या उसके अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उस छिपे रहस्य को आप देखना चाहोगे? भाव है कि कवि उस रहस्य को अपने भीतर संभालकर रखना चाहता है। वह उसे व्यक्त नहीं करना चाहता।
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग- 2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्त्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने मुंशी प्रेमचंद के आग्रह पर भी उनकी पत्रिका ‘हंस’ के ‘आत्मकथा अंक’ के लिए अपनी आत्मकथा नहीं लिखी थी। उन्होंने माना था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं था जो औरों को कुछ सरस दे पाता।
व्याख्या- कवि कहता है कि जीवन रूपी उपवन में उसका मन रूपी भंवरा गुंजार करता हुआ पता नहीं अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुःख, वह नहीं जानता। पर इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझा कर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा हुआ है। उसे केवल दुःख और पीड़ा रूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ बिना पूरी हुए ही मन में घुटकर रह गई। उचित परिस्थितियों और वातावरण को न पाकर वे समय से पहले ही पीले-सूखे पत्तों की तरह मुरझाकर मिट गईं। जीवन के अंतहीन गंभीर विस्तार में जीवन के असंख्य इतिहास रचे जाते हैं। वे बीती हुई निराशा भरी बातें कवि की स्थिति और पीड़ा पर व्यंग्य करती हैं, उसका उपहास उड़ाती हैं और कवि चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। वह अपने जीवन की विवशताओं के सामने विवश है, हताश है। वह दुःख भरे स्वर में उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के बारे में जानने की इच्छा रखने वालों से पूछता है कि उसकी पीड़ा और विवशता को देखकर भी क्या वे कहते हैं कि कवि अपनी पीड़ा, दुर्बलता और अपने पर बीती दुःखभरी कहानी को फिर से सुनाए, फिर से दोहराए। क्या उसकी पीड़ा देखकर ही नहीं समझी जा सकती? जब तुम उसकी जीवन रूपी खाली गागर को देखोगे तो क्या तुम्हें उसे देख सुनकर सुख प्राप्त होगा? उसके हताश और निराशा से भरे अभावपूर्ण मन में कोई ऐसा भाव नहीं है जिसे दूसरों को सुनाया जा सके।