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‘बाजा़र दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते हैं?


‘बाजा़र दर्शन’ पाठ में निम्न प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है-

- पर्चेजिंग पावर का प्रदर्शन करने वाले ग्राहक।

- संयमी और बुद्धिमान ग्राहक।

- बाजार का बाजा़रूपन बढ़ाने वाले ग्राहक।

- आवश्यकतानुसार खरीदने वाले ग्राहक।

में अपने आपको अंतिम श्रेणी का ग्राहक मानता हूँ। मैं अपने पैसे को न तो व्यर्थ की चीजें खरीदकर बहाता हूँ और जोड़ता चला जाता हूँ। जिस चीज की आवश्यकता होती है केवल उसी चीज को खरीदता हूँ।

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लेखक ने पाठ में इस ओर संकेत किया है कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।


प्राय: ऐसा देखा जाता है कि जब हम बाजा़र में दुकानदार के सम्मुख अपनी आवश्यकताओं को प्रकट कर देते हैं तब वह यह जान जाता है कि अमुक वस्तु तौ हमें खरीदनी ही है। अत: वह हमारा शोषण करने पर तुल जाता है। वह अधिक कीमत वसूल कर या घटिया क्वालिटी की वस्तु देकर हमारा शोषण करता है।

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स्त्री माया न जोड़े यहाँ ‘माया’ शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? क्या स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त है अथवा परिस्थितिवश? वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?

स्त्री माया जोड़ने मे विश्वास करती है। यहाँ ‘माया’ शब्द मैं धन संपत्ति एव वस्तुओं के सग्रह की ओर संकेत है। वैसे माया जोड़ना सभी प्राणियो का प्रकृति प्रदत्त गण है पर स्त्रियाँ परिस्थितिवश भी माया जोड़ती हैं। वे परिस्थितियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं-

- अंतर्निर्भरता की पूर्ति।

- भविष्य की सुरक्षा।

- अनिश्चि भविष्य।

- संग्रह की प्रवृत्ति की संतुष्टि।

- दूसरों से बढ्कर दिखाने की प्रवृत्ति।

- अपने अहं की तुष्टि।

- बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए।

- बच्चों के विवाह-शादी के लिए।

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आप बाजा़र की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाजा़र और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नज़र आती है?


हम बाजा़र की भिन्न भिन्न संस्कृति से भली- भांति परिचित हैं। मॉल की संस्कृति उच्च वर्ग से अधिक संबंधित है, जबकि सामान्य बाजार में सभी प्रकार के ग्राहक जाते हैं। इसमें मध्यवर्ग का ग्राहक अधिक होता है। ‘हाट’ की संस्कृति ग्रामीण एव निम्न मध्यवर्ग के लोगों के अधिक अनुकूल होती है।

हमें पर्चेजिंग पावर मॉल संस्कृति में ज्यादा नजर आती है। यहाँ लोग अपनी जरूरतो के मुताबिक खरीददारी नहीं करते, अपितु पर्चेजिंग पावर के हिसाब से खरीददारी करते हैं। वे तब-तक अनाप-शनाप सामान खरीदते रहते हैं जब तक उनकी क्रयशक्ति बनी रहती रहती है। वे जेब में भरे रुपयों को ध्यान में रखकर खरीददारी करते हैं।

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बाजा़र दर्शन पाठ मे बाजा़र जाने या न जाने के संदर्भ मे मन में कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
(क) मन खाली हो          (ख) मन खाली न हो,

(ग) मन बंद हो,            (घ) मन में नकार हो।


(क) बाजा़र जाने के संदर्भ में एक स्थिति यह बताई गई हैं कि ही हम खाली मन और भरी जब बाजा़र जाते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि हम बाजार से अनाप-शनाप चीजें खरीद लाते हैं। हम तब तक चीजें खरीदते रहते हैं जब तक जेब में पैसा रहता है। बाजार का जादू हमारे सिर पर चढ़कर बोलता है। मेरा अपना अनुभव भी इसी प्रकार का है। मुझे एक लॉटरी से एक लाख रुपए मिले थे। मैं घोड़े पर सवार था। यार दोस्तों के साथ बाजार गया। वहाँ से एक फ्रिज एक बड़े आकार का टी. वी. तथा एक स्कूटर खरीद लाया। ये सभी चीजें घर पर पहले से ही मौजूद थीं पर बाजार में इनके नए मॉडल मुझे इतने आकर्षक लगे कि मैं इन्हें खरीदने का लोभ संवरण नहीं कर सका। घर आकर मालूम हुआ कि पैसा व्यर्थ ही खर्च हो गया। इसका अन्य काम में सदुपयोग किया जा सकता था।

(ख) मन खाली न होने पर व्यक्ति अपनी इच्छित वस्तु ही खरीदता है और बाजार से लौट आता है। मैं बाजार से प्रतिदिन सब्जी खरीदने जाता हूँ और केवल सब्जियाँ ही खरीदकर घर लौट आता हूँ। बाजार की अन्य चीजों को मैं देखता तक नहीं।

(ग) मन बंद होने की स्थिति में मैं कभी नही होता। मन को बंद करना अच्छी स्थिति नहीं है। मन भी किसी प्रयोजन से मिला है।

(घ) मन मे नकार का भाव रखना भी उचित नहीं हैँ। हर वस्तु के प्रति नकारात्मक भाव रखना मुझे सही प्रतीत नहीं होता।

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