लेखक अपने मित्र की किस बात का उल्लेख करता है?


लेखक एक बार की बात बताता है। उनके एक मित्र बाजार गए तो थे कोई एक मामूली चीज लेने पर लौटे तो एकदम बहुत-से बंडल पास थे। लेखक ने पूछा यह क्या है? वे बोले-यह जो साथ थीं। उनका आशय था कि पत्नी की महिमा है। उस महिमा का लेखक कायल है। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े तो क्या वह जोड़े? फिर भी सच सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्व की महिमा सविशेष है। वह तत्व है मनीबैग, अर्थात् पैसे की गर्मी या एनर्जी।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उसकी महिमा का मैं कायल हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोड़े? फिर भी सच-सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है मनीबेग, अर्थात् पैसे की गरमी या एनर्जी।

पैसा पावर है। पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखे भी दीखते हैं। पैसे की उस ‘पर्चेजिंग पावर’ के प्रयोग में ही पावर का रस है।
1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. लंबक किसकी महिमा का कायल है?
3. मनीबेग से क्या तात्पर्य है?
4. पैसे के बारे में लेखक क्या कहता है?


1. पाठ का नाम: बाजार दर्शन। लेखक का नाम: जैनेंद्र कुमार।
2. लेखक पत्नी की महिमा का कायल है। प्राचीन काल से ही खरीददारी में पत्नी की भूमिका अहम् होती रही है। इसी महिमा के कारण बाजार का अस्तित्व है।
3. ‘मनीबैग’ से तात्पर्य है-पैसे की गरमी। जब तक व्यक्ति के पास पैसा होता है तब तक वह खरीददारी करता है; वह अपनी जरूरत के बिना भी खरीददारी करता है।
4. पैसे के बारे में लेखक यह कहता है कि पैसा पावर है अर्थात् पैसे में काफी शक्ति है। पैसे की पावर तभी दिखाई देती है जब उससे खरीददारी की जाती है। किसी के बैंक खाते को देखने की बजाय उसके माल-सामान और कोठी (मकान) से उसकी अमीरी का पता चल जाता है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय, राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी ही होती है, जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर वांछित व्यवहार अलग-अलग कर सके। वैसे भी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, ‘मानवता’ के द्दष्टिकोण से समाज को दो वर्गों या श्रेणियों में नहीं थबाँटाजा सकता। ऐसी स्थिति में, राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए।
1. राजनीतिज्ञ को व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता क्यों रहती है? यह सिद्धांत क्या हो सकता है?
2. राजनीतिज्ञ की विवशता क्या होती है?
3. भिन्न व्यवहार मानवता की दृष्टि से उपयुक्त क्यों नहीं होता है?
4. समाज के दो वर्गों से क्या तात्पर्य है? वर्गानुसार भिन्न व्यवहार औचित्यपूर्ण क्या नहीं होता?


1. राजनीतिज्ञ को व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता इसलिए रहती है क्योंकि उसके पास समय का अभाव होता है। उसे प्रत्येक के बारे में पूरी जानकारी भी नहीं होती। उसका व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए।
2. राजनीतिज्ञ की विवशता यह होती है कि उसका बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। इन सभी की आवश्यकताओं और क्षमताओं की जानकारी रखना उसके लिए कठिन होता है। उसके पास समय का भी अभाव होता है।
3. भिन्न व्यवहार मानवता की दृष्टि से इसलिए उपयुक्त नहीं होता क्योंकि इससे समाज दो वर्गों या श्रेणियों में बँट जाता है। मानव समाज का बँटवारा करना मानवीय दृष्टिकोण से ठीक नहीं है।
4. समाज के दो वर्गो से तात्पर्य है-उच्च वर्ग और निम्न वर्ग। एक वर्ग है-जिनके पास है और दूसरा वर्ग है-जिनके पास नहीं है। वर्ग के अनुसार भिन्न व्यवहार को औचित्यपूर्ण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे समाज का बँटवारा होता है। यह समता के सिद्धांत के विरुद्ध है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुम्बक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली, पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उसके पास पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है।
1. लेखक ने क्यों कहा कि बाजार में एक जादू है?
2. ‘मन खाली होने’ से क्या अभिप्राय है? यह खाली मन बाजारवाद को कैसे सेवा देता है?
3. आज का उपभोक्ता जेब खाली होने पर भी खरीदारी करता है यह समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है? आप ऐसा क्यों मानते हैं?



1. लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि बाजा़र का जादू हमारे सिर चढ़कर बोलता है। बाजा़र का जादू औंखों की राह काम करता है। हम बाजार में चीजों के आकर्षण में खो जाते हैं और उन्हें खरीदने को विवश हो जाते हैं।
2. ‘मन खाली होने’ से अभिप्राय है: मन में यह विचार आना कि मेरे पास बहुत कम चीजें हैं और मुझे बाजार में प्रदर्शित चीजों को खरीदना चाहिए। यह खाली मन बाजारवाद को बढ़ावा देता है। मन खाली होने पर बाजार की चीजों का आमंत्रण मिल जाता है अर्थात् मन उन चीजों को खरीदने का करता है। इसी से बाजारवाद को बढ़ावा मिलता है।
3. आज का उपभोक्ता जेब खाली होने पर भी खरीददारी करता है, यह समाज की इस प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है कि आज की खरीददारी आवश्यकताओं को देखकर नहीं की जाती बल्कि दूसरों से आगे निकल जाने की इच्छा की पूर्ति के कारण की जाती है। क्रेडिट कार्ड यही काम कर रहा है। इससे धन का अपव्यय हो रहा है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
उस बल को नाम जो दो; पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं, आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखूँ और प्रतिपादन करूँ। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है।
1. ‘उस बल’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? उसे अपर जाति का तत्व क्यों कहा है?
2. लेखक की विनम्रता किस कथन से व्यक्त हो रही है और आप उसके कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
3. लेखक ने व्यक्ति की निर्बलता का प्रमाण किसे माना है और क्यों?
4. मनुष्य पर धन की विजय चेतन पर जड़ की विजय कैसे है?


1. बाजार जाकर आवश्यक-अनावश्यक वस्तुएँ खरीद सकने का बल, वह संसारी वैभव की भातभाँतिने-फूलने वाला नही है, इसलिए उसे अपर जाति का तत्त्व कहा है।
2. मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ …
   मुझे योग्यता नहीं कि मैं शब्दों के अंतर देखूँ
  लेखक से सहमत होना कठिन है क्योंकि वह विद्वान और योग्य है, यह लेख ही इसका प्रमाण है।
3. संचय की तृष्णा बटोरकर रखने की चाह निर्बलता के प्रमाण हैं क्योंकि निर्बल व्यक्ति ही इनकी ओर झुकता है।
4. मनुष्य चेतन है और घन जड़। जड़ चेतन मनुष्य जड़ धन-संपत्ति की चाह में उसके वश में हो जाता है तो उसे ही कहा जाएगा चेतन पर जड़ की विजय।  

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