निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-  
लेकिन इस बार मैंने साफ इनकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भर कर पानी ले गईं उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लहू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, “देख भइया रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमे पानी कैसे देंगे? “मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं। “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।”
1.  लेखक ने किस बात से इनकार कर दिया?
2.  जीजी ने रूठे लेखक को किस प्रकार मनाया?
3.  जीजी ने अपनी बात के पक्ष में क्या तर्क दिए?
4.  वह पानी देने को क्या बताती रही?




1. लेखक न जीजी की बात मानने से इनकार करते हुए कहा कि इस बार वह इस इंदर सेना। (मेंढक मंडली) के ललड़कोंपर बाल्टी भरकर पानी नहीं फेंकेगा।
2. लेखक मुँह फुलाकर रूठ गया। जीजी ने उसे मनाने के लिए शाम को लट्टू-मठरी खाने को दिए पर लेखक ने उन्हे खाया नहीं। फिर वह लेखक के सिर पर हाथ फेरकर समझाने का प्रयास करती रही।
3. जीजी ने अपनी बात के पक्ष में यह तर्क दिया, यदि हम इन लडुकों को पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैच देंगे। पहले कुछ दिया जाता है तभी तो पाने की आशा की जाती है।
4. जीजी पानी देने को भगवान को अअर्घ्यचढ़ाना बताती रही। यह अअर्घ्यचढ़ाना पानी की बर्बादी न होकर हमारी पूजा है। मनुष्य जो चीज पाना चाहता है, उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? ऋषि-मुनियों ने भी दान की महिमा का बखान किया है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-  
फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता दो तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएंगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गाँधीजी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाँधी महाराज की बात अक्सर करने लगी थीं।
1. जीजी अपनी बात के पक्ष में क्या उदाहरण देती है?
2. जीजी पानी फेंकने को क्या बताती है? क्यों?
3. ऋषि-मुनि क्या कह गए हैं?
4. जीजी गाँधीजी महाराज का नाम क्यों लेती थीं?



1. जीजी पानी देने की बात के पक्ष में खेत में गेहूँ उगाने का उदाहरण देती है। वह कहती है कि यदि खेत में 30-40 मन गेहूँ उगाना हो तो किसान अपने पास से 5-6 सेर गेहूँ खेत में बीज के रूप में डालता है। तभी उसे अच्छी फसल मिलती है।
2. जीजी पानी फेंकने को भी बुवाई ही कहती है! जितना पानी हम इन लड़कों पर फेंकते हैं, उससे कई गुना पानी इंद्र देवता हमें वर्षा के रूप में लौटा देता है।
3. ऋषि-मुनि यह कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें उसका चार गुना- आठ गुना करके लौटाएंगे। कुछ पाने के लिए पहले कुछ देना पड़ता है।
4. जीजी गाँधीजी महाराज का नाम इसलिए लेती हैं क्योंकि उनका एक लड़का राष्ट्रीय आदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था। उसका संबंध गाँधीजी के आंदोलन से था अत: जीजी का जुड़ाव भी गाँधी जी के साथ हो गया था।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-  
इन बातों को आज पचास से ज्यादा बरस होने को आए पर ज्यों-की-त्यों मन पर दरज हैं। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, अंग्रेज चले गए पर क्या हम आज भी सच्चे अर्थों में आजाद हो पाए। क्या उनकी रहन-सहन, उनकी भाषा, उनकी संस्कृति से आजाद होकर अपने देश के संस्कारों को समझ पाए। हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगे हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे या उसके भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? यही कारण है कि रोज हम पढ़ते हैं कि यह हजार करोड़ की योजना बनी, वह चार हजार करोड़ की योजना बनी, पर यह अरबों-खरबों की राशि कहाँ गुम हो जाती है? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
1. लेखक की चिंता किस बात को लेकर है?
2. आज किस भावना का नामो-निशान नहीं है?
3. भ्रष्टाचार के बारे में क्या कहा गया है?
4. आज देश की हालत क्या है?


1. लेखक की चिता इस बात को लेकर है कि आजादी को मिले 50 से ज्यादा साल बीत गए, पर हम सच्चे अर्थो मे आजाद नहीं हो पाए।
2. आज देश के लिए त्याग करने की भावना का नामोनिशान तक नहीं है। हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। हम अपने देश के संस्कारों को नहीं समझ पाए हैं।
3. देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार है। हम चटखारे लेकर भ्रष्टाचार की बातें तो करते हैं, पर इस समस्या पर कभी गंभीरता से सोचते नहीं। क्या हम भ्रष्टाचार के अंग नहीं बनते जा रहे है? यह प्रश्न विचारणीय है।
4. आज देश की हालत यह है कि अरबों-खरबों की राशि न जाने कहाँ गुम हो जाती है। योजनाएँ तो बनती हैं, पैसों की व्यवस्था भी की जाती है पर भ्रष्टाचार सारी राशि को निगल जाता है। गाँवों की हालत वहीं की वहीं रह जाती है।

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जीजी ने रूठे लेखक को किस प्रकार मनाने का प्रयास किया? उसने क्या बात समझाई?


जीजी लेखक के मुँह में मठरी डालती हुई बोलीं, “देख बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपए हैं और उसमें से तू दो-चार रुपए किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। त्याग तो वह होता है कि जो चीज तेरे पास भी कम है जिसकी तुझको भी जरूरत है तो अपनी जरूरत पीछे रख कर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता है दान तो कह होता है उसी का फल मिलता है।”

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‘काले मेधा पानी दे’ पाठ का प्रतिपाद्य दीजिए।


‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने लोक आस्था और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी सामर्थ्य। लेखक ने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि से मुक्ति पाने हेतु गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी माँगने जाती है लेकिन लेखक का तर्कशील किशोर मन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बर्बादी समझता है। लेखक की जीजी इस कार्य को अंधविश्वास न मानकर लोक आस्था त्याग की भावना कहती है। लेखक बार-बार अपनी जीजी के तर्को का खंडन करता हुए इसे पाखंड और अंधविश्वास कहता है लेकिन जीजी की संतुष्टि और अपने सद्भाव को बचाए रखने के लिए वह तमाम रीति-रिवाजों को ऊपरी तौर पर सही मानता है लेकिन अंतर्मन से उनका खंडन करता चलता है। पाठ के अंत में लेखक ने देशभक्ति का परिचय देते हुए देश में फैले भ्रष्टाचार के प्रति गहन चिंता व्यक्त की है तथा उन लोगों के प्रति कटाक्ष किया है जो आज भी पश्चिमी संस्कृति और भाषा के अधीन हैं तथा भ्रष्टाचार को अनदेखा कर रहे हैं।

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