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नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए-

(क) पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले।

(ख) खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी।

(ग) अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण।


(क) जिस प्रकार किसी पुस्तक का पहला संस्करण निकलता है और बाद में उसके वैसे ही अन्य संस्करण भी निकलते हैं, इसी प्रकार भक्तिन ने पहली कन्या को जन्म देने कै बाद वैसी ही दो कन्याएँ और पैदा कर दीं। ये सभी कन्याएँ रंग-रूप आकार में एक समान थीं।

(ख) ऐसी टकसाल जहाँ खोटे सिक्के ही ढलते हों। यहाँ इसका प्रयोग भक्तिन के संदर्भ में किया गया है। उसे खोटे सिक्के (बेटियाँ) ढालने (पैदा करने) वाली टकसाल (पत्नी-स्त्री) बताया गया है। बेटे पैदा करने वाली स्त्री को ऊँचा दर्जा प्राप्त होता है जबकि लड़कियाँ पैदा करने वाली स्त्री को तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है।

(ग) भक्तिन (लछमिन) पिता की मृत्यु के काफी समय बाद अपने गाँव गई (क्योंकि उसे पिता की मृत्यु का पता ही नहीं चला) तो वहाँ की स्त्रियाँ अस्फुट स्वरों में कह रही थीं-हाय लछमिन अब आई-यह बात बार-बार दोहराई जा रही थी। वैसे वे स्त्रियाँ दिखाने के लिए उसे सहानुभूति दृष्टि से देख रही थीं।

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‘बहनोई’ शब्द ‘बहन (स्त्री.+) ओई’ से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुल्लिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती। यही पुं. प्रत्यय ‘ओई’ हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिंदी तथा और भाषाओं में खोज करें।


ननद + ओई = ननदोई

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पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझकर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में डालकर प्रस्तुत कीजिए।

(क) ई कउन बड़ी बात आय।  रोटी बनाय जानित है, दाल संधि लेइत है, साग- भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।

(ख) हमारे मालकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागव तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।

(ग) ऊ बिचरिउअ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं अउर तुम पचे घूमती-फिरती है। चली तनिक हाथ बटाय लेऊ।

(घ) तब ऊ कुच्छों करिहैं-धारिहैं ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।

(ड.) तुम पचै का का बताई-यहै पचास बरिस से लग रहित हैं।

(च) हम कुकुरी बिलारी न होयँ, हमारे मन पुसारी तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पर्चे का छाती पै होरहा भूजब और राज करब समुझे रहौ।


(क) यह क्या बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ, दाल पका लेती हूँ, साग-सब्जी छींक सकती हूँ और बाकी क्या रहा?

(ख) हमारी मालकिन तो रात-दिन किताबों में गड़ी (डूबी) रहती हैं। अब यदि हम भी पढ़ने लगे तो घर-गृहस्थी कौन देखेगा-सुनेगा।

(ग) वह बेचारी तो रात-दिन काम में झुकी (लगी) रहती है और तुम घूमती-फिरती हो। चलो, तनिक हाथ बँटा लें।

(घ) तब वह कुछ भी करता-धरता नहीं, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता है।

(ड.) तुम लोगों का मैं क्या बताऊँ-यह पचास वर्ष से साथ रहता है।

(च) हम कुतिया-बिल्ली नहीं हैं। यदि हमारा मन ने चाहा तो हम दूसरे के यहाँ जाएँगे नहीं तो मैं तुम लोगों की छाती पर चने भूनूँगी और राज करूँगी-यह समझ लेना।

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भक्तिन पाठ में पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है, साथ ही ये प्रयोग कथ्य को संप्रेषणीय बनाने में भी मददगार है। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता के खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक हैं।

- अरे! उससे सावधान रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर देता है।

- घबरा मत! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज्यादा फाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन भेज दूँगा।

- जॉनी टेसन नई लेने का वो जिस स्कूल में पड़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।


ओह! तुम आ गए? तुम तो बड़े खतरनाक हो। जहाँ जाते हो कंट्रोवर्सी पैदा कर देते हो।

हैरान मत हो! मेरी कंट्रोवर्सी तुम्हें फायदा ही पहुँचाएगी। मैं सब हैंडल कर लूँगा।

मुझे कोई टेंशन नहीं। मैं तुम जैसे से फाइट करना चाहता हूँ।

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