निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। वैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है, पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज मं आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया. पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। उपनाम रखने की प्रतिभा होती, तो मैं सबसे पहले उसका प्रयोग अपने ऊपर करती, इस तथ्य को वह देहातिन क्या जाने।
1. वह ‘देहातिन’ कौन थी? उसने अपने नाम का उपयोग न करने की प्रार्थना लेखिका से क्यों की?
2. ‘मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है’-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
3. आशय स्पष्ट कीजिए-लक्ष्मी की समृद्धि कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी।
4. लेखिका और उसके घर में काम करने वाली भक्तिन के वास्तविक नामों में ऐसा क्या विरोधाभास था जिसे लेकर दोनों को जीना पड़ रहा था?
1. वह देहातिन भक्तिन (लछमिन अर्थात् लक्ष्मी) थी। उसने लेखिका से अपने नाम का उपयोग न करने की प्रार्थना इसलिए की थी क्योंकि उसका असली नाम समृद्धिसूचक था जबकि उसका जीवन दीन-हीन था। लक्ष्मी नाम उसके जीवन के अनुरूप न था। अत: वह इसे छिपाना चाहती थी।
2. ‘महादेवी’ नाम लेखिका के लिए दुर्वह है। लेखिका चाहकर भी अपने नाम महादेवी के अनुरूप महान देवी नहीं बन पाई। इस नाम की विशालता का वहन करना उसके लिए सरल काम नहीं है।
3. लक्ष्मी समृद्धि की प्रतीक है। लक्ष्मी को दुर्भाग्य की रेखाओं में बाँधकर नहीं रखा जा सकता। किसी गरिब स्त्री का नाम लक्ष्मी रखना उसका मजाक उड़ाना है। लक्ष्मी तो धन-दौलत की देवी है।
4. लेखिका का नाम था-महादेवी। उसके घर काम करने वाली भक्तिन का नाम था लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। दोनों को नामों के विरोधाभास में जीना पड़ रहा था। लेखिका महान देवी न होकर सामान्य नारी थी और भक्तिन लक्ष्मी जैसी समृद्ध न होकर अत्यंत गरीब, दीन-हीन थी। दोनों के नाम और वास्तविक जीवन में बड़ा विरोधाभास था।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
शास्त्र का प्रश्न भी भक्तिन अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेती है। मुझे स्त्रियों का सिर मुटाना अच्छा नहीं लगता, अत: मैंने भक्तिन को रोका। उसने अकुंठितभाव से उत्तर दिया कि शास्त्र में लिखा है। कुतूहलवश मैं पूछ ही बैठी-’क्यालिखा है?’ तुरंत उत्तर मिला-‘तीरथ गए मुँडाए सिद्ध।’ कौन-से शास्त्र का यह रहस्यमय सूत्र है, यह जान लेना मेरे लिए संभव ही नहीं था। अत: मैं हारकर मौन हो रही और भक्तिन का चूड़ाकर्म हर बृहस्पतिवार को एक दरिद्र नापित के गगंगा जल से धुले उस्तरे द्वारा निष्पन्न होता रहा।
पर वह मूर्ख है या विद्या-बुद्धि का महत्त्व नहीं जानती, यह कहना असत्य कहना है। अपने विद्या के अभाव को वह मेरी पढ़ाई-लिखाई पर अभिमान करके भर लेती है। एक बार जब मैंने सब काम करने वालों से अँगूठे के निशान के स्थान में हस्ताक्षर लेने का नियम बनाया तथा भक्तिन बड़े कष्ट में पड़ गई, क्योंकि एक तो उससे पढ़ने की मुसीबत नहीं उठाई जा सकती थी, दूसरे सब गाड़ीवान दाइयों के साथ बैठकर पढ़ना उसकी वयोवृद्धता का अपमान था। अत: उसने कहना आरंभ किया-‘हमारे मलकिन तौ रात-दिन कितबियन मा गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।’
1. पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।
2. भक्तिन हर हफ्ते क्या करवाती थी? क्यों?
3. भक्तिन किस मुसीबत में पड़ गई?
4. भक्तिन ने अपनी पढ़ाई का क्या बहाना निकाला?
1. पाठ का नाम: भक्तिन।
लेखिका का नाम: महादेवी वर्मा।
2. भक्तिन हर हफ्ते बृहस्पतिवार को गंगाजल से धुले उस्तरे से अपने बाल उतरवाती थी। भक्तिन विधवा थी। उसकी समझ के अनुसार शास्त्रो में ऐसा लिखा है कि विधवा को सिर मुँडाए बिना सिद्धि नहीं मिलती। वह शास्त्र में बताए नियम का पालन करती थी।
3. एक बार लेखिका ने अपने यहाँ काम करने वालों से अँगूठा के निशान के स्थान पर हस्ताक्षर करने का नियम बनाया। उस समय भक्तिन मुसीबत में पड़ गई। एक तो वह पड़ने की मुसीबत नहीं उठा सकती थी, दूसरे वह गाड़ीवान और दाइयों के साथ बैठकर पढ़ना उसकी वृद्धावस्था का अपमान था।
4. भक्तिन ने अपनी पढ़ाई का यह बहाना निकाला उसने कहा कि हमारी मालकिन तो हर समय किताबो में डूबी रहती है अर्थात् पढ़ती-लिखती रहती है। अगर मैं भी पढ़ने-लिखने बैठ गई तो घर-गृहस्थी का काम कौन करेगा?
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक स्वामी का संबंध है, यह काफी कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो अच्छा होने पर भी सेवक की अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हंस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरे-उजाले और आंगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।
1. क्या कहना कठिन है?
2. भक्तिन और लेखिका के परस्पर संबंध को स्पष्ट कीजिए।
3. लेखिका द्वारा नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश पाकर भक्तिन की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
4. भक्तिन को नौकर कहना कितना असंगत है?
1. यह कहना कठिन है कि भक्तिन और लेखिका के बीच सेवक स्वामी का संबंध है।
2. भक्तिन लेखिका के घर में सेविका का कार्य करती थी लेकिन लेखिका के हृदय में उनके प्रति अपार श्रद्धा तथा प्रेमभाव था। वह उसे एक सेविका न मानकर अपने परिवार का सदस्य मानती थी। लेखिका उसके साथ कभी भी नौकर-मालिक जैसा व्यवहार नहीं करती थी।
3. लेखिका जब कभी परेशान होकर भक्तिन की नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश दे देती थी तो उस आदेश को सुनकर भक्तिन हँस दिया करती थी। वह वहाँ से बिल्कुल भी नहीं हिलती थी।
4. भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आंगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊँची दीवार देखते ही, वह खि मूँदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्व मेरे साथ का ठहरना है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी दै धोती साबुन से साफ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित। भला ऐसा अँधेर हो सकता है। जहाँ मालिक वहाँ नौकर-मालिक को ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं; पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर अन्याय है। ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा। किसी की माई यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी; पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल सकता।
1. भक्तिन किस बात से डरती है और क्यों?
2. डरकर वह क्या पूछने लगती है?
3. वह किस बात से स्वयं को अपमानित अनुभव करती है?
4. भक्तिन किस बात पर बड़े लाट तक लड़ना चाहती है?
1. भक्तिन कारागार (जेल) से वैसे ही डरती है जैसे वह यमलोक से डरती है। इसका कारण यह है कि भक्तिन के संस्कार ही कुछ इस प्रकार के हैं। ऊँची दीवार देखकर ही वह आँख मूँदकर बेहोश हो जाती है।
2. लेखिका के जेल जाने की संभावना से डरकर भक्तिन उनसे यह पूछने लगती है कि वह क्या-क्या सामान बाँध ले ताकि वहाँ असुविधा का सामना न करना पड़े।
3. जब वह जानती है कि वह वहाँ लेखिका के साथ नहीं जा पाएगी तो वह इस संभावना से स्वयं को अपमानित अनुभव करती है।
4. भक्तिन की दृष्टि में यह सबसे बड़ा अन्याय है कि मालिक को तो बंद कर दिया जाए और नौकर को अकेले मुका छोड़ दिया जाए। यह अन्याय है और वह इसके खिलाफ बड़े लाट तक जाएगी और लड़ाई करेगी। भक्तिन यह लड़ाई अवश्य लड़ेगी।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को किर्यात्मक रूप देती है, इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसी ही उद्भासित हो उठती है, जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, औंखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता। यह स्वाभाविक भी हे। किसी चित्र को पूरा करने में व्यस्त, मैं जब बार-बार कहने पर भी भोजन के लिए नहीं उठती, तब वह कभी दही का शर्बत, कभी तुलसी की चाय वहीं देकर भूख का कष्ट नहीं सहने देती।
1. कौन, किससे, क्या आग्रह करती है? क्यों?
2. वह क्या-क्या काम करती थी? इससे क्या प्रमाणित हो जाता है?
3. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन की क्या दशा होती है?
4. भक्तिन लेखिका को किस समय भूख का कष्ट नहीं सहने देती?
1. भक्तिन लेखिका से यह आग्रह करती है कि वह उसे कुछ काम करने को बतायें। वह कोई सहायता न करके अपनी हीनता स्वीकार नहीं करना चाहती है।
2. वह कभी उत्तर पुस्तिकाओं को बाँधती थी, कभी अधूरे चित्र को कोने में रख देती थी कभी रग की प्याली धो देती थी, कभी चटाई को झाडू देती थी। उसके इन कामों से उसका अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है।
3. जब कभी लेखिका की कोई पुस्तक प्रकाशत होती है तब भक्तिन के चेहरे पर उसकी मुस्कारहट की आभा देखी जा सकती है। यह स्थिति कुछ इस प्रकार का होती है जैसे स्विच दबाने मे बबल्बमें प्रकाश चमक उठता है।
4. जब लेखिका चित्र को पूरा करने में व्यस्त हो जाती और भक्तिन के कहने पर भी भोजन के लिए-नहीं उठती तब भक्तिन कभी दही का शर्बत (लस्सी) तो कभी तुलसी की चाय बनाकर उन्हें पिलाती और इससे उनकी भूख को शांत करती।