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यदि आपको शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे किसी मित्र का परिचय लोगों से करवाना हो, तो किन शब्दों में करवाएँगे?


यह मेरा मित्र सचिन है। यद्यपि प्रकृति ने इसे देखने की शक्ति से वंचित रखा है, पर यह अपने मन की आँखों से सब कुछ देख लेता है, यहाँ तक कि उसको भी देख लेता है जो हम नहीं देख पाते। मेरा मित्र ईश्वर भक्त है। यह ईश्वर को अपनी अपंगता के लिए कभी नहीं कोसता। यह पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज है। एक बार सुनी बातें यह लंबे समय तक याद रखता है। मेरा मित्र कक्षा का मेधावी छात्र है। इसकी रुचि संगीत में भी है। यह अपने काम स्वयं कर लेता है। एक प्रकार से यह आत्मनिर्भर है। यह एक सच्चा मित्र है। मुझे अपने मित्र सचिन पर गर्व है।

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यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी. वी. पर ऐसे सामाजिक कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।


सेवा में,

निदेशक,

दूरदर्शन कार्यक्रम

नई दिल्ली।

विषय: 2० जनवरी, 2008 को डी.डी.-I पर प्रसारित साक्षात्कार कार्यक्रम पर प्रतिक्रिया

महोदय,

आपके उपर्युक्त चैनल पर इस तिथि को अपंग व्यक्ति से संबधित साक्षात्कार प्रसारित किया गया। इस कार्यक्रम को मैंने भी बड़े ध्यानपूर्वक देखा। इस कार्यक्रम पर दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित की गई हैं। मेरी प्रतिक्रिया इस प्रकार है-

यह साक्षात्कार कार्यक्रम बनावटीपन का शिकार होकर रह गया। इसमें मानवीय संवेदना का पहलू पूरी तरह नदारद था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि साक्षात्कारकर्त्ता महोदय कार्यक्रम को पूरी तरह से अपनी मनमर्जी से चला रहे हैं। उन्हें अपंग व्यक्तियों की मनोदशा का ज्ञान कतई नहीं है। वे तो उसे अपनी व्यथा-कथा बताने का मौका तक नहीं दे रहे थे।

आशा है भविष्य में संवेदनशील कार्यक्रम बनाए जाएँगे।

भवदीय

पूजा दलाल

निशात पार्क, नई दिल्ली

दिनांक............

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सामाजिक उद्देश्य से युक्त ऐसे कार्यक्रम को देखकर आपको कैसा लगेगा? अपने विचार संक्षेप में लिखें।

इस कार्यक्रम को सामाजिक उद्देश्य से युक्त बताया गया है जबकि यह बिल्कुल असत्य है। इस कार्यक्रम से किसी सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती। इस कार्यक्रम को देखकर प्रश्नकर्त्ता/संचालक की बुद्धि पर तरस आता है। इस कार्यक्रम में सर्वत्र हृदयहीनता झलकती है। यह पूरी तरह से संवेदनहीन है। इस कार्यक्रम का प्रभाव उल्टा पड़ता है।

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नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए-

उम्र पाँच साल, संपूर्ण रूप से विकलाग और दौड़ गया पाँच किलोमीटर। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन यह कारनामा कर दिखाया है पवन ने। बिहारी बुधिया के नाम से प्रसिद्ध पवन जन्म से ही विकलाग है। इसके दोनों हाथ का पुलवा नहीं है, जबकि पैर में सिर्फ एड़ी ही है।

पवन ने रविवार को पटना के कारगिल चौक से सुबह 8.40 पर दौड़ना शुरू किया। डाकबंगला रोड, तारामंडल और आर ब्लाक होते हुए पवन का सफर एक घटे बाद शहीद स्मारक पर जाकर खत्म हुआ। पवन द्वारा तय की गई इस दूरी के दौरान ‘उम्मीद स्कूल’ के तकरीबन तीन सौ बच्च साथ दौड़ कर उसका हौसला बड़ा रहे थे। सड़क किनारे खड़े दर्शक यह देखकर हतप्रभ थे कि किस तरह एक विकलांग बच्चा जोश एवं उत्साह के साथ दौड़ता चला आ रहा है। जहानाबाद जिले का रहने वाला पवन नव रसना एकेडमी, बेउर में कक्षा एक का छात्र है। असल में पवन का सपना उड़ीसा के बुधिया जैसा करतब दिखाने का है। कुछ माह पूर्व बुधिया 65 किलोमीटर दौड़ चुका है। लेकिन बुधिया पूरी तरह से स्वस्थ है जबकि पवन पूरी तरह से विकलांग। पवन का सपना कश्मीर से कन्या कुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है।

(9 अक्टूबर, 2006 हिंदुस्तान से साभार)


साक्षात्कार

स्नेहलता

(प्रश्नकर्त्ता)

:

बुधिया, तुम कबसे विकलांग हो?

बुधिया

:

जब मैं पाँच वर्ष का था तभी से मै विकलांग हूँ।

स्नेहलता

:

क्या तुम्हें दौड़ने में कष्ट नहीं होता?

बुधिया

:

होता तो है, पर अब मुझे इसकी आदत-सी हो गई है।

स्नेहलता

:

तुम अब तक सबसे ललंबीदौड़ कितने किलोमीटर की दौड़ चुके हो?

बुधिया

:

मैं अब तक सबसे लंबी दौड़ पाँच किलोमीटर की लगा चुका हूँ।

स्नेहलता

:

क्या तुमने पी.टी. उषा का नाम सुना है?

बुधिया

:

हाँ सुना है। मैंने उसी से प्रेरणा ली है।

स्नेहलता

:

वह कितनी लंबी दौड़ लगा चुका है?

बुधिया

:

वह 65 किलोमीटर दौड़ चुका है।

स्नेहलता

:

बुधिया, तुम्हारा सपना क्या है?

बुधिया

:

मेरा सपना कश्मीर से कन्याकुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है।

स्नेहलता

:

बुधिया, हमारी शुभकामना तुम्हारे साथ है।

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